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________________ परमार्थ मनुष्य चिंतनशील प्राणी है; वह सोचता है, विचार करता है और प्रत्येक विचार किसी संदर्भ के साथ करता है । मनुष्य की कोटियों के बारे में विचार किया गया । अधमतम, अधम, विमध्यम, मध्यम, उत्तम - इन पांच कोटियों पर मोक्ष के संदर्भ में विचार किया गया । जिस व्यक्ति का मोक्ष के प्रति कोई लगाव नहीं होता, बंधनमुक्त होने की कोई अवधारणा ही जिसके मन में नहीं होती, उस व्यक्ति को बिल्कुल निकृष्ट माना गया । इसका यह अर्थ नहीं | है कि उसका जीवन कोई निकृष्ट या अधमतम ही हो । अलग-अलग अपेक्षाएं होती हैं और अपेक्षा के साथ विचार को समझना होता है । अपेक्षा को छोड़ कर किसी शब्द और विचार को समझें तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है । शब्द कोई अर्थ नहीं देता । शब्द की अपेक्षा को समझें तभी कोई बात समझ में आती है । शब्द के तात्पर्य और संदर्भ को न समझ पाएं तो अज्ञान झलकता है । मां ने अपनी लड़की से कहा- आज तुम्हारे प्रति मेरे मन में बहुत स्नेह का भाव जाग रहा है | 'आइ लव टु यू टू माइक्स । लडकी शब्द के भाव और संदर्भ को समझ नहीं सकी। वह बोल उठी- आइ लव टू यू श्रीमाईक्स ।' के आगे श्री आ गया ! टू उत्तम है मोक्ष लक्षी शब्द के सन्दर्भ को समझे बिना अर्थ को समझेंगे तो उसका अर्थ भी गड़बड़ा जायेगा । इसलिए हमें सन्दर्भ को समझना है ! मनुष्य का जो वर्गीकरण किया गया है, वह सारा मोक्ष को सामने रख कर किया गया है । इस दृष्टि परमार्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only ३७ www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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