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________________ क्या जन्म दुःख का निमित्त है ? प्रश्न है- क्या जन्म दुःख का निमित्त बनता है ? जन्म दुःख का निमित्त कैसे बनेगा ? मरण दुःख का निमित्त हो सकता है, किन्तु जन्म दुःख का निमित्त कैसे हो सकता है ? वस्तुतः जन्म भी दुःख का निमित्त बनता है । जन्म के साथ शरीर का निर्माण होता है । शरीर दुःखों का घर है। रोग कहां होता है ? वह शरीर में होता है। बुढ़ापा आता है इसी शरीर में । शरीर नहीं है तो कोई उपद्रव नहीं होता । शरीर के साथ उपद्रव रहता है। शरीर को डर रहता है कि कहीं जुकाम न हो जाए, बुखार न हो जाए । गर्मी आती है तो लू लगने का डर रहता है। यह डर इसलिए है कि शरीर में कोई कष्ट न पैदा हो जाए। शरीर में हेतुजनित बीमारियां पैदा होती हैं। इसीलिए आदमी तुजनित कष्टों और कठिनाइयों से बचाव की कोशिश करता है। सर्दी में भीतर रहता है, हीटर लगा लेता है। गर्मी आती है तो कूलर चला लेता है, मकान को एयरकंडीशन बना लेता है ताकि शरीर को कष्ट न हो । शरीर में नाना प्रकार के उपद्रव होते रहते हैं । वे शरीर को सताते हैं, ताप देते हैं । प्रिय और अप्रिय भाव भी शरीर को छूते हैं। एक बहुत सुंदर वचन न हि अशरीरं प्रतपन्त्युपद्रवाः । नाशरीरं प्रियाप्रिये स्पृशतः ॥ , शरीर को प्रिय स्पर्श होता है तो बहुत ठण्डा लगता है, अच्छा लगता है । अप्रिय होता है तो बहुत खराब लगता है । ये प्रिय और अप्रिय शरीर के साथ जुड़े हुए हैं। शरीर के साथ हमारी इन्द्रियां भी जुड़ी हुई हैं, मन भी जुड़ा हुआ है । शरीर इन्द्रिय और मन - इन्हें कभी अलग नहीं किया जा सकता | शरीर और मन को दुःख होता है क्योंकि जन्म हुआ है। जन्म से दुःख जुड़ा हुआ है । इसलिए ठीक कहा गया- यह जन्म दुःख - निमित्त है । प्रश्न यह है कि जो दुःख का निमित्त है, उसे सफल कैसे किया जाए ? वह सार्थक कैसे बने ? वह सुख का हेतु कैसे बने ? ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only जैन धर्म के साधना सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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