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________________ णमो लोए सब्ब साहूणं मनुष्य ने जब धर्म को समझा, अध्यात्म की दिशा में प्रस्थान किया तब उसके मन में एक विकल्प उठा कि ऐसा मनुष्य होना चाहिए, जो अनगार हो, जिसके अगार-घर न हो । हर आदमी घर बनाने की बात पहले सोचता है। आदमी ही नहीं, प्रत्येक प्राणी अपने लिए घर बनाता है | चींटी, मकोड़े भी अपना ‘बिल' बनाते हैं | चूहे भी अपना बिल बनाते हैं । पशु पक्षी भी अपना घर बनाते हैं | कोई घरौंदा बनाता है, कोई नीड़, कोई घोंसला और कोई घुरा बनाता है । प्रत्येक प्राणी को घर चाहिए । इस विश्व में एक नया प्रकल्प उठा कि ऐसा भी प्राणी होना चाहिए, जो अपना घर न बनाए, जिसका अपना घर न हो। यह नया प्रकल्प था । अनगार सरकार भी सबको आवास व्यवस्था की सुविधा देने की बात सोचती है और इस दिशा में सघन प्रयत्न भी करती है । वह चाहती है कि बेघरबार कोई न हो । 'गडरिये लुहार' जो पीढ़ियों से घुमक्कड़ हैं, निरन्तर घूमते रहते हैं, उन्हें भी बसाने का प्रयत्न हुआ है और हो रहा है । रोटी जरूरी है जीने के लिए | परन्तु घर उससे कम जरूरी नहीं रहा । इन सबके विपरीत 'बेघरबार' व्यक्ति की कल्पना की गई, अनगार की कल्पना हुई । अनेक व्यक्ति इस दिशा में प्रस्थित होकर अनगार बन गए | घर को छोड़कर बेघरबार हो गए। यद्यपि यह अनगार घरों में रहते हैं, पर उनके दिमाग में घर नहीं रहता | रहने का स्थान जंगल भी है, गुफा भी है और घर भी है । अनगार इन सब स्थानों में रहते हैं । प्रासाद में भी रहते हैं, पर उनके दिमाग में प्रासाद नहीं १०४ जैन धर्म के साधना-सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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