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________________ साधु प्रकरण ५६ प्रश्न २४६. करण गुण क्या है तथा उसके ७० भेद कौन-कौन से है ? उत्तर-प्रयोजन उत्पन्न होने पर साधुओं द्वारा जिनका सेवन किया जाए, वे करणगुण कहलाते हैं। करणगुण भी सत्तर हैं, (ये करणसत्तरी के नाम से प्रसिद्ध हैं) यथा-चार प्रकार की पिण्डविशुद्धि, पांच समितियां, बारह भावनाएं, बारह प्रतिमाएं, पांच इन्द्रियों का निग्रह, पच्चीस प्रकार की पडिलेहणा, तीन गुप्तियां और चार अभिग्रह ।' प्रश्न २५०. साधु की जाति कौनसी है। उत्तर-पंचेन्द्रिय। प्रश्न २५१. साधु की काय कौनसी है। उत्तर-त्रसकाय। प्रश्न २५२. साधु में इन्द्रियां कितनी होती है। उत्तर-पांच। प्रश्न २५३. साधु में पर्याप्ति कितनी है? उत्तर-छह। प्रश्न २५४. साधु में प्राण कितने होते है ? उत्तर-दस। प्रश्न २५५. साधु में शरीर कितने होते हैं? उत्तर सामान्यतया पांचों शरीर होते हैं। वर्तमान में एक साधु की अपेक्षा तीन शरीर पाते हैं-औदारिक, तैजस, कार्मण । प्रश्न २५६. साधु में योग कितने होते हैं ? उत्तर-पन्द्रह । प्रश्न २५७. साधु में उपयोग कितने होते हैं? उत्तर-नौ। तीन अज्ञान छोड़कर ।' प्रश्न २५८. साधु के कितने कर्म का बंध होता है ? उत्तर-सात-आठ। प्रश्न २५६. साधु में गुणस्थान कितने पाए जाते हैं ? उत्तर-नौ (९) छह से लेकर चौदहवें तक। प्रश्न २६०. साधु में इंद्रियों के विषय कितने हैं। उत्तर-तेईस। १. ओघनियुक्ति भाष्य गाथा ३ ३. २१द्वार १२/७ २. २१ द्वार १२/१ ४. २१ द्वार १२/७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003051
Book TitleSadhwachar ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnishkumarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size6 MB
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