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________________ ३६ उत्तर- छब्बीसवें देवलोक तक । प्रश्न १२१. छेदोपस्थापनीय चारित्र एक भव की अपेक्षा उत्कृष्ट कितनी बार प्राप्त हो सकता है ? उत्तर - १२० (एक सौ बीस) बार । प्रश्न १२२. छेदोपस्थापनीय चारित्र अनेक भव की अपेक्षा उत्कृष्ट कितनी बार प्राप्त हो सकता है ? उत्तर - ९६० ( नौ सौ साठ ) बार। प्रश्न १२३. छेदोपस्थापनीय चारित्र की एक जीव की अपेक्षा जघन्य व उत्कृष्ट स्थिति कितनी होती है । उत्तर - जघन्य अंतर्मुहूर्त । उत्कृष्ट (कुछ कम ) करोड़ पूर्व । प्रश्न १२४. छेदोपस्थानीय चारित्र की अनेक जीवों की अपेक्षा स्थिति कितनी है ? उत्तर- भगवान् ऋषभ तथा महावीर का शासन काल जितना है उतनी स्थिति । प्रश्न १२५. छेदोपस्थापनीय चारित्र में गुणस्थान कितने पाते हैं ? उत्तर-चार - प्रमत्त संयत गुणस्थान, अप्रमत्त संयत गुणस्थान, निवृत्ति बादर, अनिवृत्ति बादर । प्रश्न १२६. छेदोपस्थापनीय चारित्र में जीव के भेद कितने पाये जाते हैं ? उत्तर - एक - चौदहवां (संज्ञी पञ्चेन्द्रिय का पर्याप्त ) । प्रश्न १२७. छेदोपस्थापनीय चारित्र में योग कितने पाये जाते हैं ? उत्तर- चौदह - (१४) -कार्मण योग को छोड़कर । प्रश्न १२८. छेदोपस्थापनीय चारित्र में उपयोग कितने पाये जाते हैं ? उत्तर - सात - प्रथम चार ज्ञान, तीन दर्शन । ४ प्रश्न १२६. छेदोपस्थापनीय चारित्र में भाव कितने पाये जाते हैं ? र-पांच | उत्तर प्रश्न १३०. छेदोपस्थापनीय में शरीर कितने पाये जाते हैं ? उत्तर - पांच - औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण | I प्रश्न १३१. छेदोपस्थापनीय चारित्र में आत्मा कितनी पायी जाती हैं ? १. भगवती ५ / ७ / ४८१ २. २१ द्वार ४. २१ द्वार साध्वाचार के सूत्र Jain Education International ५. २१ द्वार ६. २१ द्वार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003051
Book TitleSadhwachar ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnishkumarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size6 MB
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