SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ साध्वाचार के सूत्र प्रश्न ११. प्रतिलेखन में प्रमाद (कथा करना, बात आदि करना) करने से कितने काय की विराधना होती है ? उत्तर-जो मुनि प्रतिलेखन करते समय काम-कथा करना, जनपद कथा करना, प्रत्याख्यान करवाना, दूसरों को पढ़ना, स्वयं पढ़ना, बात करना आदि करने से वह छह कायों का विराधक होता है।' प्रश्न १२. छद्मस्थ और केवली की द्रव्य व भाव प्रतिलेखना क्या है ? उत्तर-प्राणियों से संसक्त वस्तु या असंसक्त विषयक होती है। यह छद्मस्थ की द्रव्य (बाह्य) प्रतिलेखना है पूर्व रात्री और अपर रात्रि में मुनि यह चिन्तन करे कि मैंने आज क्या किया है? और क्या करनीय शेष है जो तप आदि में कर सकता हूं क्या मैं उसे नहीं कर रहा हूं यह छद्मस्थ की भाव प्रतिलेखना है। प्राणियों से संसक्त वस्तु विषयक होती है। यह केवली की द्रव्य (बाह्य) प्रतिलेखना है। केवली आयुष्य कर्म को थोड़ा और वेदनीय आदि कर्मों को अधिक जानकर समुद्घात करते है वह केवली की भाव प्रतिलेखना है। १. (क) उत्तराध्ययन २६/२६-३० (ख) भिक्षु आगम शब्द कोश २. (क) ओघ नियुक्ति ५६,२५७,२५६,२६२ (ख) भिक्षु आगम शब्द कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003051
Book TitleSadhwachar ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnishkumarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy