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________________ संपादकीय अध्यात्म की दृष्टि में पूज्य वही है, जिसका आचरण श्रेष्ठ है। साधु के प्रति पूज्यता का भाव इसीलिए होता है कि वह चरित्र से उन्नत होता है। पूजा चरित्र की होती है, सदाचार की होती है। आचार और चरित्र शून्य व्यक्ति के प्रति कभी आस्था का जन्म नहीं होता। साधु वही है, जिसमें साधुता है, आचरण की श्रेष्ठता है। जैन साधु की एक विशिष्ट पहचान है आचार के संदर्भ में। जैन साधु-चर्या का जैन आगमों में विशद विवरण उपलब्ध है। साध्वाचार से जनता भी परिचित बने, इस दृष्टि से उसको जन-भाषा हिन्दी में प्रस्तुत करने की अपेक्षा महसूस हुई। प्रस्तुत पुस्तक 'साध्वाचार के सूत्र' इस दिशा में एक विनम्र प्रयत्न है। प्रस्तुत सामग्री के संकलन में आगमों के अतिरिक्त चारित्रप्रकाश आदि ग्रंथों का विशेष उपयोग किया है। पूज्यवर का अनुग्रह एवं आशीर्वाद मेरे जीवन की अनमोल निधि है। उनके आशीर्वाद से ही मैं जीवन में यत्किञ्चित् कर पाया हूं। प्रस्तुत संकलन की इस रूप में प्रस्तुति में अनेक मुनिजनों का सहकार मिला है। पुनरीक्षण आदि में मुनिश्री कुलदीपकुमारजी एवं मुनिश्री हिमांशुकुमारजी का पूरा योग रहा। मुनिश्री धनंजयकुमारजी ने प्रस्तुत कृति के परिष्कार में अपने बहुमूल्य क्षण लगाए हैं। साध्वाचार से संबद्ध इस कृति से पाठक वर्ग को साधु-चर्या एवं आचार की व्यवस्थित जानकारी मिल सकेगी, ऐसा विश्वास है। मुनि रजनीश कुमार १२ अगस्त २००८ अणुविभा केन्द्र (जयपुर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003051
Book TitleSadhwachar ke Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajnishkumarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size6 MB
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