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________________ २४ महाप्रज्ञ - दर्शन प्राण कहते हैं । प्राण कोई ठोस पदार्थ नहीं है। यह वह संजीवनी शक्ति है जो प्रत्येक पदार्थ को स्पन्दित करती है । हमारे पूरे शरीर में प्राण व्याप्त है । यद्यपि प्राण प्रत्यक्ष गोचर नहीं है तथापि प्राण का कार्य प्रत्यक्ष गोचर है। प्राण के कारण ही हमारे शरीर में वे सब क्रियायें हो रही हैं जो शरीर के अस्तित्व के लिए आवश्यक है । जब शरीर में प्राण नहीं रहता तो शरीर की ये क्रियाएं भी बंद हो जाती हैं और शरीर शव बन जाता है, तब हम कहते हैं कि यह शरीर निष्प्राण हो गया। प्राण का ही एक दूसरा रूप वायु अथवा पवन भी है जहाँ-जहाँ हमारी चेतना जाती है वहीं पवन का भी संचार होने लगता हैयत्र मनस्तत्र पवनः । बस यही तथ्य हमारे हाथ में हमारे शरीर की नकेल थमा देता है। हम शरीर के जिस भाग पर भी चित्त को ले जायेंगे वहीं प्राणों का प्रवाह होने लगेगा और जिस भाग में प्राणों का प्रवाह होने लगेगा वह भाग स्वस्थ होने लगेगा क्योंकि प्राणों का प्रवाह मल भाग को निकालकर बाहर फेंक देता है। 1 यह प्राण तत्त्व ही हमारे शरीर को शक्ति देता है। भौतिक क्षेत्र में जैसे किसी पदार्थ का विद्युच्चुम्बकीय क्षेत्र होता है वैसे ही हमारे शरीर का भी एक विद्युच्चुम्बकीय क्षेत्र है जिसे आभामण्डल कहा जाता है। यह आभामण्डल हमारे शरीर तक ही सीमित नहीं है अपितु शरीर के चारों ओर, शरीर के बाहर भी फैला है । यह ओज तत्त्व है जो वीर्य का सार है । जो अन्न हम खाते हैं वह रक्त, मांस, मज्जा आदि का निर्माण करते हुए अंत में वीर्य बनता है । यह वीर्य ही और अधिक परिष्कृत होने पर ओज बन जाता है । वीर्य पार्थिव है, ओज अन्तरिक्ष्य है । वीर्य शरीर के अन्दर है, ओज शरीर के बाहर रहता है। यही ओज महापुरुषों के चित्रों में सिर के चारों ओर आभामण्डल के रूप में दिखला दिया जाता है। वह कलाकार की कल्पना है किंतु यह कल्पना इस वास्तविकता पर टिकी है कि हमारे शरीर के चारों ओर वस्तुतः एक ओजमण्डल है । ऊपर हमने कहा कि दार्शनिक जिसे प्राण कह रहे थे आज का वैज्ञानिक उसे ही क्वाण्टम कह रहा है। यह "क्वाण्टम " विज्ञान की कृपा से आज प्रत्यक्षवत् हो गया है। पुरानी भाषा का प्रयोग करें तो क्वाण्टम अतीन्द्रिय है किंतु विज्ञान ने इतने सूक्ष्म और शक्तिशाली उपकरण आविष्कृत कर दिए हैं कि कल तक जो इन्द्रियातीत था वह आज उन उपकरणों की सहायता से प्रत्यक्ष हो गया है । चार्वाक का आग्रह है कि वह प्रत्यक्ष को ही मानेगा । विज्ञान ने जो कल तक प्रत्यक्ष नहीं था उसे भी आज प्रत्यक्ष गम्य बना दिया है । अतः प्रत्यक्षवादी को भी जो तत्त्व कल तक मान्य नहीं थे, आज वे तत्त्व मानने पड़ रहे हैं। परस्परोपग्रहो जीवानाम् क्वाण्टम एक ऊर्जासमूह है। इस ऊर्जा समूह से ही समस्त भूत-भौतिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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