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________________ महाप्रज्ञ-जैनेन्द्र-सम्वाद ३४३ मुनिश्री- इसे लययोग कहा जाता है। योग के अनेक प्रकार हैं-जपयोग, लययोग, ध्यानयोग आदि। पर सब योगों की अन्तिम शर्त है-आत्मा, इन्द्रिय तथा मन की एकलयता। शिष्य का अर्थ ही यही है कि वह गुरु में अपने आपको लीन कर दे। यदि शिष्य गुरु में लीन नहीं होता है तो उसे बौद्धिक उपलब्धि भले ही हो जाए पर उससे परे जो आत्मोपलब्धि है वह नहीं हो सकती। प्राचीन आचार्य शिष्यों को पढ़ाते बहुत थोड़ा थे और अपना काम ज्यादा करवाते थे। वस्तुतः जो शिष्य गुरु में लीन हो जाता था, वह दिनभर गुरु की सेवा में तन्मय रहता था। जब कभी गुरु उसे थोड़ा-बहुत ज्ञान दे देते उससे उसकी आत्मा जागृत हो जाती थी। आत्मजागृति के सामने बौद्धिक उपलब्धि अत्यन्त तुच्छ वस्तु है। वास्तव में जो दूसरों में अपने आपको लीन नहीं कर देता वह सदा अपने आप में उद्विग्न और चिन्तित रहता है। जैनेन्द्र- शान्ति श्मशान की शान्ति नहीं होनी चाहिए। जड़ शान्ति में चैतन्य कुण्ठित हो जाता है। मुनिश्री- मैं परिस्थिति से आँख-मिचौनी करने वाली कृत्रिम शान्ति की बात नहीं कर रहा हूँ। अन्याय के प्रतिकार को मैं शान्ति-भंग नहीं कह रहा हूँ। मैं उस शान्ति की बात कह रहा हूँ, जिसमें प्रतिकार की शक्ति सुरक्षित है, जिसे प्रतिगामी चुनौती नहीं दे सकता, प्रतिकार की क्षमता से विचलित कर स्वयं को आकुल नहीं बना सकता। मन की स्थिति सुदृढ़ होने पर वह अग्राह्य को छोड़ देता है, जैसे चलनी आटा छानती है उसमें अग्राह्य अंश शेष रह जाता है। कुटिलता व्यक्त होने पर ऋजुता शेष रहती है। ग्रंथि-मोक्ष अपने आप हो जाता जैनेन्द्र- ध्याता और ध्येय-यह द्वैत हो वहाँ एकत्व कैसे संभव है? आत्मा आत्मा में लीन-यह कैसी स्थिति है? मुनिश्री- आत्मा का आत्मा में लीन होना यह स्थिति का द्वैत है। जिसमें लीन होता है, वह शुद्ध अवस्था है। जिसे लीन होना है, वह बहिर्मुखी अवस्था है। जैनेन्द्र- मुझे ध्यान खतरनाक लगता है। उसे स्व-रति के खतरे से बचना है। थोड़ा ध्यान जिसमें स्वास्थ्य लाभ हो, जिसका सेवा में उपयोग हो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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