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________________ अन्तरायाधिकरणे शारीरिकबाधापदः ३२५ जितना आवश्यक है। जरूरत पूरी होते ही सोचने का दरवाजा बंद कर दें । मन शांत हो जायेगा । ० त्वरा च मानसिक अस्त-व्यस्तता का एक कारण है- जल्दबाजी । मनुष्य में धृति नहीं है। वह प्रतीक्षा करना नहीं चाहता । असहिष्णुता च तनाव का तीसरा कारण है - सहिष्णुता की कमी। मानसिक असंतुलन का एक कारण है- उदासी । उदास व्यक्ति अपनी क्षमताओं का ठीक उपयोग नहीं कर पाता । उसकी शक्तियाँ क्षीण हो जाती है पारिवारिक एवं सामाजिक वातावरण भी उदासी के मुख्य हेतु हैं । ० दुराग्रहश्च मानसिक असंतुलन का एक कारण है - दुराग्रह । आग्रह बहुत असंतुलन पैदा करता है। पक्षपात भी मानसिक असंतुलन का एक कारण है। इससे अपना संतुलन भी बिगड़ता है और सामने वाले का संतुलन भी बिगड़ता है। मानसिक असंतुलन का एक कारण है - नाड़ी की दुर्बलता । नाड़ी संस्थान की दुर्बलता, पृष्ठरज्जु की दुर्बलता और मस्तिष्क की दुर्बलता - ये सब असंतुलन के कारण बनते हैं । असंयमश्च लोलुपता च पदार्थ की प्रतिबद्धता जैसे-जैसे बढ़ती है वैसे-वैसे मन भारी होता जाता है। टूटने लग जाता है। लोभ और काम वासना जितनी प्रबल होगी, तनाव उतना ही अधिक होगा। असंयम तनाव का जनक है। संयम के बिना तनाव को मिटाया नहीं जा सकता । ० कामवासना च जब हमारी चेतना काम केन्द्र की ओर अधिक बढ़ने लगती है तब सहज ही ज्ञानकेन्द्र की शक्तियाँ क्षीण हो जाती है। जो साधक अपने ज्ञान का विकास चाहता है, जो निर्मलता चाहता है, उसे चेतना के प्रवाह को मोड़ना होगा अर्थात् मन को ऊपर की ओर ले जाना होगा । O ० प्रियवियोगश्च अप्रियसंयोगश्च असहायता च ० ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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