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________________ 3०६ महाप्रज्ञ-दर्शन जीभ को उलटते ही प्राण वायु ऊपर मस्तिष्क में चली जाती है। यह महाप्राण ध्यान का पहला चरण है। महाप्राण में प्राण को एक बिंदु पर सिर में केन्द्रित किया जाता है जिससे कि प्राण की सारी क्रिया समाप्त हो जाये। ० प्राणापानविषमता रोगः ० समता स्वास्थ्यम् प्राण और पान की विषमता यानि शरीर और मन की अस्वस्थता। प्राण और अपान की समता यानि शरीर और मन की स्वस्थता। ० संवेगविचारयोरन्योऽन्यनियंत्रणकत्वम् संवेग नियंत्रण, विचार नियंत्रण में सहायक और विचार नियंत्रण संवेग नियंत्रण में सहायक। ० शरीरमनसोरन्योऽन्यचञ्चलता शरीर की चंचलता मन की चंचलता, शरीर की स्थिरता मन की स्थिरता है। शरीर की स्थिरता शिथिलीकरण के द्वारा प्राप्त होती है। ० चञ्चले मनसि प्रयोजनशून्यता क्रमबद्धताभावश्च जब मन चंचल होता है तब दो स्थितियाँ बनती हैं-प्रयोजन शून्यता और क्रमबद्धता का अभाव । ० सरले मनसि समस्यासमाधानम् मन को सरल बनाये बिना मानसिक उलझन कभी नहीं मिट सकती। ० मनस्यन्तर्जल्पः ० वाचि वैखरी वाक् मन और वाणी में इतना सा अन्तर है कि मन शब्द के सहारे चलने वाला विकल्प है और वाक् शब्द के सहारे बाहर झलक पड़ने वाला विकल्प है। ० आनन्दमनुभूय ब्रह्मचर्यसम्भवो, न तु तदभावे . सुखानुभूति के द्वार को बंद कर कोई आदमी ब्रह्मचारी नहीं बन सकता किंतु आनन्दानुभूति के द्वार को खोलकर ही ब्रह्मचारी बन सकता है। ० काल्पनिके सुखदुःखे .० विकल्पजन्ये तयोस्तीव्रतामन्दते कल्पना का दूसरा रूप है-विकल्प। यह मान लेना कि मैं सुखी हूँ, दुःखी हूँ-यह कल्पना ही तो है। वास्तव में सुख दुःख अनुभव के साथ जुड़ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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