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________________ २६८ ० स्वभावस्मृतिर्विभावरेचनं साधनाया लक्ष्यम् ध्यान का उद्देश्य है - स्वभाव की सतत स्मृति, सतत दर्शन और विभाव का रेचन । O सत्यसाक्षात्कारस्समस्यासमाधानञ्च O रूपान्तरण-कषायमुक्ति-मोहनीयकर्मक्षयाश्च ० रागद्वेषहानिश्च ० प्राणोर्जा- वृद्धिश्च ध्यान और कायोत्सर्ग का मूल प्रयोजन है सच्चाई को समझकर अपनी समस्या को सुलझाना | प्रेक्षाध्यान का मुख्य प्रयोजन है भाव परिवर्तन, वृत्तियों का रूपान्तरण । क्रोध, मान, माया, लोभ, ईर्ष्या, घृणा, भय, कामवासना आदि-आदि जो मोहनीय कर्म की प्रकृतियाँ हैं उनसे निपटना, संस्कारों को क्षीण करना - यह है ध्यान का मुख्य प्रयोजन | ध्यान का मूल उद्देश्य है - राग और द्वेष को कम करना । प्रेक्षाध्यान का एक महत्त्वपूर्ण अंग है - प्राण ऊर्जा को जागृत करना । ० परिस्थितिजय चेतनोत्थान-मूर्च्छाहानयस्सिद्धेः फलम् ० कषायशान्ति-निर्मलते वा सिद्धि के तीन स्तर हैं १. प्राकृतिक, जैसे परिस्थितियों पर प्रभुत्व पाना । २. चेतना का जागरण | ३. मूर्च्छा की समाप्ति । साधना का उद्देश्य है कषाय की शान्ति, चेतना की निर्मलता । • संवेदने मन्दे सति दर्शनम् ० मन्दतरे समता ० क्षीणे वीतरागता संवेदन मंद होने पर दर्शन समाधि, मंदतर होने पर समता समाधि और क्षीण होने पर वीतराग समाधि फलित होती है। प्रवृत्ति-निवृत्तिसंतुलनं ध्यानस्य फलितम् महाप्रज्ञ - दर्शन ० ० दृष्टभावविकासश्च O मानसिक संतुलनञ्च ० मनोव्यथाजन्यरोगनिवारणञ्च प्रेक्षाध्यान के मुख्य फलित ये हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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