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________________ २८५ रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे मनःपादः ये तीनों रेखाएं अपने-अपने क्षेत्र में विकसित होती हैं। तब असदाचार पर सदाचार हावी नहीं हो सकता । o साधना स्वभावपरिवर्तनप्रक्रिया साधना का अर्थ है- स्वभाव परिवर्तन की प्रक्रिया | सा चित्तात्मिका निर्जरा ० ० चित्तातीता संवररूपा साधनाएं दो प्रकार की हैं - एक चित्त पर्याय का निर्माण, जो निर्जरा की साधना है । एक चित्तातीत का निर्माण, जो संवर की साधना है । ० सूक्ष्म उच्चारणे ग्रन्थिभेदः o स आज्ञाचक्रे योग ने मानसिक ग्रन्थियों के भेदन की पद्धति का विकास किया था । जब हमारा उच्चारण सूक्ष्म हो जाता है, उस समय ग्रन्थियों का भेदन शुरु हो जाता है। आज्ञाचक्र तक पहुँचते-पहुँचते ध्वनि बहुत सूक्ष्म हो जाती है, सूक्ष्मतम हो जाती है और उन ग्रन्थियों का भेदन भी शुरू हो जाता है। • आत्मविश्लेषणं विचयध्यानम् ० तेन कषायाणां विचयः | तनाव विसर्जन का सूत्र है -विचय- ध्यान | व्यक्ति आत्म विश्लेषण करे - क्रोध क्यों आता है? लोभ क्यों जागता है ? जब हम अपना आत्म विश्लेषण करते हैं तब आर्त्त - रौद्र ध्यान छूट जाते हैं। धर्म-ध्यान का प्रारम्भ विचार विश्लेषण के द्वारा होता है। • ममताविसर्जने शून्यता ० तत्र चैतन्य - शरीर-सम्पर्क-विच्छेदः तत्र तीव्रचैतन्यानुभूतिर्न तु मूर्च्छा O ० तत्रासीमशक्त्युद्भवः शून्यता का अभ्यास - वैज्ञानिक धातु को ठंडा करता जा रहा है। जैसे ही वह परम शून्य के निकट पहुँचा तो उसने पाया कि प्रतिरोध शक्ति विलुप्त हो गई। उसके विलुप्त होने पर प्रतिक्रिया शून्य असीम शक्ति का स्रोत प्राप्त होने की संभावना बन गई । I हमारे भीतर भी प्रतिरोध शक्ति है। उसका नाम अहं है । इसके रहते हुए परम शून्य तक नहीं पहुँच पाते। इसका विसर्जन करने पर हम प्रतिक्रियाहीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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