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________________ २७२ महाप्रज्ञ-दर्शन कृष्णलेश्या अशुद्धतम क्लिष्टतम नीललेश्या अशुद्धतर क्लिष्टतर कापोतलेश्या अशुद्ध क्लिष्ट तैजस्लेश्या अक्लिष्ट पदम्लेश्या शुद्धतर अक्लिष्टतर शुक्ललेश्या शुद्धतम अक्लिष्टतम ० ईर्ष्या-कदाग्रह-माया-निर्लज्जता-आसक्ति-प्रद्वेष-शठता-प्रमाद-यशःलोलुपतासुखेच्छा-क्षुद्रता-अविवेक-अतपस्विता-अविद्या-हिंसाः नील-लेश्यालक्षणानि आभामण्डल में नीले रंग की प्रधानता हो तो समझा जा सकता है कि व्यक्ति में ईर्ष्या कदाग्रह, माया, निर्लज्जता, आसक्ति, प्रद्वेष, शठता, प्रमाद यशलोलुपता, सुख की गवेषणा, प्रकृति की क्षुद्रता, बिना विचारे काम करना, अतपस्विता, अविद्या, हिंसा में प्रवृत्ति इस प्रकार की भावधारा और प्रवृत्ति होती है। यदि नील वर्ण अधिक अप्रशस्त, अमनोज्ञ होता है तो उक्त भावधारा और प्रवृत्ति के अधिक तीव्ररूप का अनुमान किया जा सकता है। ० वक्रता-प्रवञ्चना-आत्मदोषगोपन-कटाक्ष-तस्करता-मात्सर्य-मिथ्यादर्शनानि कापोत-लेश्या लक्षणानि आभामण्डल में कापोत वर्ण की प्रधानता हो तो समझा जा सकता है कि इस व्यक्ति में वाणी की वक्रता, आचरण में वक्रता, प्रवंचना, अपने दोषों को छिपाने की प्रवृत्ति, मखौल करना, दुष्टवचन बोलना, चोरी करना, मात्सर्य, मिथ्या दृष्टि इस प्रकार की भावधारा और प्रवृत्ति होती है। ० नम्रता-स्थिरता-ऋजुता-अनौत्सुक्य-विनय-जितेन्द्रियता-समाधि-तपः-आस्था -पाप-भीरुता-मुमुक्षाः रक्तलेश्यालक्षणानि आभामण्डल में रक्त वर्ण की प्रधानता हो तो समझा जा सकता है कि यह व्यक्ति नम्र व्यवहार करने वाला, अचपल, ऋजु, कुतूहल न करने वाला, विनयी, जितेन्द्रिय, मानसिक समाधि वाला, तपस्वी, धर्म में दृढ़ आस्था रखने वाला, पापभीरु और मुक्ति की गवेषणा करने वाला है। ० शान्ति-समाधि-वचनसंयम-जितेन्द्रियता-संयमाः पीतलेश्यालक्षणानि आभामण्डल में पीत वर्ण की प्रधानता हो तो समझा जा सकता है कि यह व्यक्ति प्रशांत चित्त वाला, समाधिस्थ अल्पभाषी, जितेन्द्रिय और आत्मसंयम करने वाला है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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