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________________ रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे साधनापादः २६३ ० क्षमतया समता क्षमता के बिना समता का विकास हो नहीं सकता। पहले क्षमता का विकास होता है तो समता भी विकसित होने लग जाती है। ० समतया निर्विकल्पता समता और निर्विकल्प अवस्था-दोनों में तालमेल है। . ० भूतेषु समता सहानुभूतिः प्राणी-प्राणी के बीच में समता की खोज सहानुभूति है। ० सहिष्णुतयाभयम् ० अभयेन मैत्री ० गर्वोन्मत्तो भयङ्करः समता का विकास १. मैत्री २. अभय और ३. सहिष्णुता-इन तीन आयामों में होता है। जिस व्यक्ति में प्रतिकूल परिस्थिति को सहन करने की क्षमता जागृत नहीं होती, वह अभय नहीं हो सकता और भयभीत मनुष्य में मैत्री का विकास नहीं हो सकता। जिसमें अनुकूल परिस्थिति को सहन करने की क्षमता जागृत नहीं होती, वह गर्व से उन्मत होकर दूसरों में भय और अमैत्री का संचार करता है। तीनों आयामों में विकास करने पर ही समता स्थायी होती ० भावो नोच्चावचो यस्य, लोकेषु सो महीयते जिसके जीवन में उच्चावच भाव नहीं रहा, उससे बड़ा आदमी इस दुनिया में और कोई नहीं होगा। ० दोषाणां साम्यमारोग्यम् ० सुखदुःखयोस्समताध्यात्मम् आयुर्वेद की भाषा में जिसे आरोग्य कहा जाता है, अध्यात्म विज्ञान की भाषा में उसे समता कहा जाता है। दोनों एक ही हैं। आयुर्वेद के आचार्यों ने आरोग्य की बहुत सुन्दर परिभाषा दी है- “दोषाणां साम्यं आरोग्यम्"-दोषों का समीकरण आरोग्य है। ० स्वमैत्री सफलता ० लक्ष्यं प्रति समर्पणं सफलतामूलम् ___सफलता का अर्थ है, अपने आप का मित्र होना और सफलता का सूत्र है लक्ष्य के प्रति समर्पण होना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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