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________________ रूपान्तरणप्रक्रियाधिकरणे साधनापाद: ० सम्यग्दृष्टिः कषायविसर्जनञ्च श्रद्धा श्रद्धा को व्यापक संदर्भ में देखें तो श्रद्धा का अर्थ होगा - सम्यक् दृष्टिकोण और कषाय का विसर्जन । ० अभेदचेतनया दर्शनं भेदचेतनया च ज्ञानम् दर्शन होता है अभेदात्मक चेतना से और ज्ञान होता है भेदात्मक चेतना से। ० आत्मावबोधो निश्चयसम्यक्त्वं, तत्वावबोधो व्यावहारिकम् आत्मा का बोध होना निश्चय सम्यक्त्व है और तत्त्वों का बोध होना व्यावहारिक सम्यक्त्व है। ० कर्मकेन्द्रबिन्दुर्मूर्छा साधनाकेन्द्रबिन्दुर्जागरणम् कर्म का केन्द्र बिंदु है-मूर्छा। साधना का केन्द्र बिंदु है-जागरण । ० आत्मसम्प्रेक्षा शुद्धचेतनानुभवो वा जागरणम् जागरण का अर्थ है-आत्मा की संप्रेक्षा, शुद्ध चेतना का अनुभव । ० स्वशक्तिप्रत्यभिज्ञा साधना साधना का अर्थ है-अपनी शक्तियों को पहचानने का प्रयत्न । ० अनासक्तियोगो निष्कामकर्म च प्रेक्षा प्रेक्षाध्यान की साधना अनासक्त योग और निष्काम कर्म की साधना है। ० चित्ताखण्डताभ्यासः साधना . साधना की परिभाषा है-चित्त की अखण्डता का अभ्यास । खण्ड-खण्ड में बंटे चित्त को जोड़कर अखण्ड कर लेना ही साधना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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