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________________ ० परिभाषाधिकरणे अहिंसापादः अनन्ता मैत्री अहिंसा अहिंसा का स्वरूप है मैत्री का अनन्त प्रवाह | • सर्वेऽभ्योऽभयमहिंसा अहिंसा की मर्यादा है सबकी सुरक्षा - प्राणी मात्र की सुरक्षा । एक की सुरक्षा और दूसरे की असुरक्षा यह अहिंसा की मर्यादा का भंग है। ० अहिंसा बलवच्छस्त्रम् • बलवानेव तत्प्रयोक्तुमलम् अहिंसा का अस्त्र आणविक अस्त्र से भी अधिक शक्तिशाली है किंतु उसका प्रयोग शक्तिशाली व्यक्ति ही कर सकता है । ० शुद्धि - शान्ती फलमहिंसायाः ० न तु भौतिकोपलब्धिः भौतिक उपलब्धि अहिंसा का परिणाम नहीं है। उसका परिणाम है आत्म-शुद्धि और मानसिक-शान्ति । ० अनेकतायामेकतादर्शनं सहास्तित्वमूलम् शान्ति का आध्यात्मिक सिद्धांत सह-अस्तित्व का विचार है। अनेक धाराएं भी सह-अस्तित्व का विकास होने पर एक धारा की भांति व्यवहार कर सकती है। ० न मूर्च्छा शान्तिः ० आत्मन्यात्मविलीनताजन्या शक्तिश्शान्तिः शान्ति चेतना की नकारात्मक स्थिति नहीं है । वह मन की मूर्च्छा नहीं है । वह अन्तःकरण की क्रियात्मक शक्ति है । अन्तःकरण जब अन्तःकरण का स्पर्श करता है, मन जब मन में विलीन होता है और चैतन्य का दीप जब चैतन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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