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________________ १५३ महाप्रज्ञ उवाच जैसे-जैसे विकास की गति तेज हो रही है-वैसे-वैसे मनुष्य का संवेगात्मक असंतुलन बढ़ रहा है। आर्थिक अपराध से आज की चेतना जितनी ग्रस्त है, उतनी शायद पहले नहीं थी। आतङ्ककारी मनोदशा में भी वृद्धि हुई है। क्या औद्योगिक और आर्थिक विकास उनको रोक पायेगा? उनके निरोध का उपाय खोजे बिना मनुष्य प्रकृति के साथ नहीं जी सकता, मानसिक शान्ति और विश्वशान्ति का स्वप्न नहीं ले सकता। सत्य के अर्न्तदर्शन में जो अनुभूति होती है, वह बाह्य पदार्थों के अनुभव से होने वाले सुख से सर्वथा भिन्न है। ..... अनुभूति के गहन स्तर पर जो सत्य का दर्शन होता है, उसका बुद्धि के स्तर पर अनुवाद नहीं किया जा सकता। अनुवाद करने पर प्रयत्न करेंगे तो वह विकृत और तिरोहित हो जाएगा। _ईगो असंयम है तो सुपर ईगो संयम है। अगर ईगो के साथ सुपर ईगो नहीं है तो हिंसा का होना अनिवार्य है। __यदि नाभिकीय युद्ध हुआ, अणुयुद्ध हुआ तो विश्व स्थिति में भारी परिवर्तन आयेगा। सारी धरती और सारा आकाश धूल से भर जायेगा। कहीं तापमान कम हो जाएगा, कहीं तापमान बहुत अधिक बढ़ जायेगा। सारा जल और स्थल भूभाग विषाक्त बन जायेगा। जीव जगत् बिलकुल नष्ट हो जायेगा। कहीं भयंकर सर्दी पड़ेगी, कहीं भयंकर गर्मी। सारे हिमखंड पिघल जायेंगे। समुद्र का जलस्तर दो-तीन मीटर ऊंचा चला जायेगा । समुद्र तट पर बसे नगर और बस्तियां डूब जायेंगी, उसके आसपास का स्थल/भूभाग जलमय बन जायेगा। एक प्रकार से हिमयुग आयेगा, केवल पानी ही पानी दिखाई देगा। यह नाभकीय विस्फोट और अणुयुद्ध से बनने वाली स्थिति है। सारे संसार में वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। उसके कारण कार्बन-डाइआक्साइड की मात्रा २५ प्रतिशत बढ़ गई है। इतनी गैसें जलाई जा रही है कि जिसके कारण वातावरण कार्बन-डाइआक्साइड से भर गया है। ओजोन की छतरी; जो एक सुरक्षा कवच है; टूटती चली जा रही है। यह धन का लोभ, यह असंयम वनों को नष्ट कर रहा है। इसका परिणाम है ऑक्सीजन की कमी और कार्बन की अधिकता। (या कार्बन-डाई-आक्साइड की अधिकता)। जो खनिज सम्पदा हजारों वर्षों तक काम आ सके, यदि वह सौ वर्षों में समाप्त हो जाए तो क्या स्थिति होगी? आने वाली पीढ़ी रोएगी। वह कहेगी-हमारे पूर्वजों ने हमारे साथ क्या किया, हमें बिलकुल दरिद्र और निकम्मा बना दिया। मकान का नाम था अगार। पहला मकान लकड़ी से बना। अग-वृक्ष से बना, इसलिए मकान का नाम अगार हो गया। उस समय न ईंटे थी न चूना। पूरा मकान लकड़ी से निर्मित हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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