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________________ १३४ महाप्रज्ञ-दर्शन इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, बंगलूर के प्रोफेसर श्री जे० बंदोपाध्याय के नेतृत्व में तैयार एक रिपोर्ट के अनुसार, “खदानों का सबसे बुरा असर यहां के जल संसाधनों पर तथा मसूरी के प्राकृतिक वातावरण पर हुआ है ।" इसी तरह पर्यावरण विभाग द्वारा तैयार कराई गई, तथा इस संबंध में एक मुकदमें के दौरान सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामे के रूप में भी पेश की गई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि खदान के मलबे को नीचे बह रही नदी और नहरों में गिरने दिया जाता है । इससे पीने तथा सिंचाई का पानी बेहद खराब हो रहा है । पिछले दो दशकों में बालदी नदी के जल ग्रहण क्षेत्र के खेतों की पैदावार २८ प्रतिशत तक गिरी है और इसी क्षेत्र के १८ गांवों के जल संसाधनों में ५० प्रतिशत की कमी आई है। ज्यादातर खदाने वन क्षेत्रों में है। इसका अनिवार्य परिणाम यह है कि वहां के जंगल कटते हैं और भूक्षरण होता है। सुरंग वाली खानों के लिए भी काफी मात्रा में जंगल कटते हैं, क्योंकि सुरंगों की छतों को लट्ठों से सहारा दिया जाता है। गोवा में खानों के लिए पट्टे पर दी गई जमीन कुल जंगल का ४३ प्रतिशत है। (पृष्ठ २७) उत्तरप्रदेश के अलमोड़ा जिले के झिरोली गांव में बिलकुल सफेद धूल हवा में छायी हुई दिखाई देगी। यह धूल लगभग ४३२ एकड़ क्षेत्र में फैली मैग्नेसाइट की खदान अलमोड़ा मैग्नेसाइट लि० से उड़ती है। मुंह बाये खड़े उन सफेद खड्डों से ४ लाख टन से भी ज्यादा खनिज निकाला जा चुका है। कुल भंडार शायद ४० लाख टन का है। वह समय दूर नहीं जब मैग्नेसाइट का आखिरी ढेर भी निकाल लिया जाएगा । सूखे और अधसूखे क्षेत्रों में, जहां हरियाली बहुत मुश्किल से पनपती है, वहां खुदाई से रेगिस्तान के फैलाव को एक और मौका मिल जाता है । "वर्तमान खनन कानूनों में बस यही ध्यान में रखा गया है कि खनिज भंडारों का पूरा-पूरा दोहन हो जाये। इस बात पर ध्यान ही नहीं गया है कि खनन समाप्त होने के बाद जमीन की उत्पादकता पर क्या- क्या बुरा असर पड़ता है। पेड़-पौधों का सफाया करने से और खनन के मलबे से राजस्थान के सूखे इलाकों में भूक्षरण की संभावनाएं बढ़ गई हैं। ऐसे ही इलाकों से रेगिस्तान का फैलाव शुरू होता है ।" राष्ट्रीय खनिज विकास निगम बस्तर के बेलाडीला में कच्चे लोहे की खदानें चला रहा है। उनसे रोजाना १५,००० टन का उत्पादन होता है। इसका ज्यादातर हिस्सा जापान को जाता है। खुदाई के काम में हर एक टन के उत्पादन के पीछे एक टन पानी खर्च होता है । यह पानी पास के किरींदल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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