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________________ ११८ महाप्रज्ञ-दर्शन जाता है। भोग्य पदार्थ बचा लिया जाता है और भोक्ता आग में जलकर भस्म हो जाता है। हमारा ध्यान सब्जेक्ट पर है, भोक्ता पर नहीं है। सारा ध्यान ऑब्जेक्ट पर, भोग्य पर केन्द्रित है। जिस व्यक्ति की पिनीयल ग्लैंड सक्रिय होती है वह अपने संवेगों पर नियंत्रण कर सकता है। अथवा हाइपोथेलेमस, जो भाव संवेदन का केन्द्र है, उसको नियंत्रित करने पर संवेगों पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है। इस बिंदु पर दोनों दृष्टियां-आध्यात्मिक और वैज्ञानिक-लगभग समान रेखा पर आ जाती हैं। हृदय परिवर्तन के संदर्भ में हृदय का अर्थ है-मस्तिष्क का वह भाग जिसे हम हाइपोथेलेमस कहते हैं। एक हृदय है धड़कने वाला-जो फेफड़ों के पास है। एक हृदय है मस्तिष्क में । हमें उसमें परिवर्तन लाना है। यही है हृदय परिवर्तन का रहस्य । मस्तिष्क का जो फ्रंटल लॉब है, जिसे हम योग की भाषा में शान्ति केन्द्र कहते हैं वह हमारे भावों और संवेगों के लिए जिम्मेदार है। यही है ललाट का भाग। जब कभी मन में विनम्रता का भाव जागृत होता है ललाट झुक जाता है। यह प्रतीक है हृदय परिवर्तन का। इस केन्द्र को जागृत करना है, इसमें परिष्कार लाना है। दूसरा है पिनीयल ग्लैंड में परिष्कार लाना। यह ज्योति केन्द्र का स्थान है। शान्ति केन्द्र प्रेक्षा और ज्योति केन्द्र प्रेक्षा-ये दो प्रयोग हैं भाव परिष्कार या संवेग परिष्कार के। इनसे संवेगों को अनुशासित किया जा सकता है। यदि विद्यार्थी को दस-बारह वर्ष की अवस्था से ही प्रयोग कराये जायें तो उसमें संवेग का संतुलन होगा, वह पारिवारिक और सामाजिक जीवन अच्छे ढंग से जी पायेगा। वह न अति कामुक और न अति चिड़चिड़ा होगा। उसमें न उदासी होगी और न वह अन्यमनस्कता का शिकार ही होगा। पाचन तंत्र ठीक रखना पहली बात है या संतुलित भोजन करना पहली बात है ? पहली बात है पाचन तंत्र को स्वस्थ बनाना। दूसरी बात है संतुलित भोजन करना। पहली बात है ग्रन्थि तंत्र को ठीक करना। दूसरी बात है संतुलित भोजन करना। यदि ग्रन्थि तंत्र संतुलित रहेगा, पेन्क्रियाज ठीक होगा तो चयापचय की क्रिया ठीक चलेगी, सारी क्रियायें ठीक चलेंगी। मांस, हड्डियां, चमड़ी आदि का सीमित उपयोग है। व्यक्तित्व का निर्माण, अन्तःप्रज्ञा का निर्माण-इन सबका विकास होता है नाड़ी तंत्र और ग्रंथि तंत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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