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________________ काम और संयम ११३ लेता है उसके लिए क्रिया बंधन का कारण बन जाती है। मनुष्य चिर-यौवन चाहता है। देवता कभी वृद्ध नहीं होते। अवतार और तीर्थंकरों को भी बुढ़ापा नहीं आता। बुढ़ापे का पहला लक्षण है शरीर में क्रियाओं का कठोर हो जाना। जब मस्तिष्क अपना लचीलापन खो देता है तब व्यक्ति की सहिष्णुता कम हो जाती है। वह बात-बात में क्रोध करने लगता है। ध्यान द्वारा यदि मस्तिष्क का लचीलापन बनाये रखा जा सके तो व्यक्ति इस स्थिति में बदल सकता है। रीढ़ की हड्डी की कठोरता व्यक्ति को बूढ़ा बना देती है। आसनों द्वारा रीढ़ की हड्डी का लचीलापन बनाये रखा जा सकता है। शारीरिक तनाव, मानसिक तनाव और भावनात्मक तनाव क्रियाओं को कठोर बनाते हैं। इसलिए तनावग्रस्त व्यक्ति जल्दी बूढ़ा हो जाता है। अप्रमाद का अर्थ है-चैतन्य के जागरण के प्रति उत्साह । इसका साधन है-भावक्रिया। भावक्रिया का अर्थ है चेतना का विकास। जो चेतना को जाग्रत रख सकता है वह बूढ़ा नहीं होता। ___युवा का अतीत बहुत छोटा होता है। वह अतीत की स्मृति में रस नहीं लेता। वृद्ध व्यक्ति अतीत की स्मृति में खोया रहता है। ध्यान हमें सिखाता है कि हम वर्तमान में जीयें। हम जो कुछ भी कर सकते हैं वर्तमान में कर सकते हैं, अतीत या भविष्य में नहीं। इसलिए वर्तमान ही सत्य है। अतीत की स्मृति और भविष्य की कल्पना मन की उपज है। वे वास्तविक नहीं हैं। हमारा शरीर बहुत जटिल है। सिर के एक बाल के आधार पर व्यक्ति का विश्लेषण किया जाता है। प्रेक्षा के द्वारा हम शरीर की प्रवृत्ति को समझ सकते हैं। युवा व्यक्ति परिस्थिति से घबराता नहीं है। वृद्ध व्यक्ति घबरा जाता है। वृद्ध व्यक्ति कुछ भी नया नहीं करना चाहता। वह बनी-बनायी नींव पर ही चलना चाहता है। युवा शक्ति कुछ नया करना चाहती है। धर्म का क्षेत्र नूतनता का क्षेत्र है। जो भोग पुराने हैं; वे अनेक तरह से भोगे गए हैं। वे परिचित हैं, समाधि अपरिचित है। जिसमें अपरिचित को जानने की जिज्ञासा है और परिचित को छोड़ने का साहस है वही भोग को छोड़कर योग में जा सकता है। स्पन्दनों का पक्ष-प्रतिपक्ष ___ परिणमन का अर्थ है-स्पन्दन । यह स्पन्दन तीन प्रकार का है। पहला चैतन्य में होने वाला स्पन्दन स्वाभाविक है। दूसरा स्पन्दन कर्म के निमित्त से होता है और तीसरा प्राण के निमित्त से। प्रथम स्पन्दन सूक्ष्मतम है, द्वितीय सूक्ष्मतर है और तृतीय सूक्ष्म । हम सामान्यतः इन तीनों ही स्पन्दनों को न पकड़ कर स्थूल शरीर के स्पन्दनों को पकड़ते हैं। यह स्थूल स्पन्दन ही हमारे लिए सुख और दुःख है। दस प्राणों के दस स्पन्दन हैं। ये प्राण हैं-श्वास, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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