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________________ (xi) धरोहर बन गया है। यह ग्रन्थ अपने आप में इतना परिपूर्ण और समृद्ध है कि संपादन की कहीं कोई अपेक्षा नहीं थी। फिर भी डॉ० भार्गव के आग्रह और पूज्यवर के निर्देश से हमें इस कार्य से जुड़ने का अवसर मिला, यह हमारे लिए आत्मतोष और प्रसन्नता का विषय है। ___आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में "दयानन्द भार्गव विद्वान् हैं यह सब जानते हैं। किन्तु वे जितने बड़े विद्वान् हैं उतने ही बड़े साधक हैं, इस बात को शायद बहुत कम लोग जानते हैं। भार्गव जी अध्ययनशील हैं। वे जितने बड़े विद्वान् हैं साथ-साथ में उतने ही बड़े विद्यार्थी हैं, छात्र हैं, जिज्ञासु हैं। जिस व्यक्ति की जिज्ञासा समाप्त हो जाती है वह दस वर्ष का भी बूढ़ा हो जाता है, और जिसमें जिज्ञासा विद्यमान रहती है वह सौ वर्ष का होकर भी शिशु रहता है, जवान रहता है। हमारे जीवन का संचालन जिज्ञासा के द्वारा ही हो रहा है। इन पांच वर्षों में डॉ० भार्गव ने हमारे साहित्य पर इतना गहन अध्ययन किया है और इतना लिखा है कि जब सामने आएगा तो कुछ नया ही रूप लेकर आएगा।" आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने डॉ. दयानन्द भार्गव के बारे में जो विश्वास व्यक्त किया है, वह शत-प्रतिशत सही प्रमाणित हुआ है। ग्रन्थ की समीक्षा और समालोचना के लिए पर्याप्त समय, सघन अध्यवसाय और सूक्ष्म दृष्टि की अपेक्षा है। यह कोई दूसरा दयानन्द भार्गव ही कर सकता है। इस ग्रन्थ के पाठक और समीक्षक को इस सचाई का अवश्य साक्षात्कार होगा, यह असंदिग्ध भाव से कहा जा सकता है। -संपादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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