SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काम और संयम शरीर की आवश्यकता अर्थ है तो मन की आवश्यकता काम है। संस्कृत में काम का नाम ही मनोज या मनसिज अर्थात् मन से उत्पन्न होने वाला है। शरीर स्थूल है, मन सूक्ष्म है। इसलिए अर्थव्यवस्था भी स्थूल है। काम की व्यवस्था सूक्ष्म है। अर्थव्यवस्था अपेक्षाकृत सरल है, काम-व्यवस्था अत्यन्त जटिल है। अर्थशास्त्र एक प्रतिष्ठित अनुशासन है जिसका व्यापक स्तर पर अध्ययन/अध्यापन प्रचलित है। वस्तुस्थिति यह है कि हमारी आर्थिक स्थिति सबको दिखती है, हमारे मन में चलने वाली गतिविधियां प्रत्यक्षगोचर नहीं हैं। किंतु हमारे जीवन को, विशेषकर आन्तरिक जीवन को अर्थ की अपेक्षा काम अधिक प्रभावित करता है। अध्यात्म और काम अर्थ पुरुषार्थ को अपरिग्रह नियंत्रित करता है तो काम पुरुषार्थ को ब्रह्मचर्य नियंत्रित करता है। वैदिक और श्रमण दोनों परम्पराओं में ब्रह्मचर्य का महत्त्व प्रतिपादित है। ब्रह्मचर्य का महत्त्व इतना अधिक हुआ कि चरित्र, संयम और ब्रह्मचर्य आम बोलचाल में प्रायः पर्यायवाची बन गये। ___ संयम का अर्थ है मध्यम मार्ग। सैक्स के संबंध में अति से बचना कठिन है। इसके लिए विधि खोजनी होगी। सैक्स केवल मानसिक प्रक्रिया नहीं है वह एक शारीरिक प्रक्रिया भी है। पुराणों में प्रसिद्ध है कि शिव ने तीसरा नेत्र खोला तो कामदेव भस्म हो गया। तीसरे नेत्र का स्थान दर्शन केन्द्र या आज्ञाचक्र है। यही पिच्युटरी ग्लैण्ड है। पिच्युटरी ग्लैण्ड सक्रिय हो जाये तो एड्रीनल ग्लैण्ड निष्क्रिय हो जाती है तब कामवृत्ति नहीं जाग पाती। ऊर्जा और काम यह एक प्रक्रिया है प्राण के ऊर्ध्वगमन की। हमारे शरीर में शक्ति का स्रोत प्राण है, रक्त और मांस नहीं। काम प्राण का संचालन करता है। यदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003049
Book TitleMahapragna Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy