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________________ लेश्या और मनोविज्ञान लेश्या से जुड़ा आभामण्डल दुनिया का हर पदार्थ चेतन और अचेतन अपने आकार में रश्मियों का विकिरण करता है। ये रश्मियां प्राण ऊर्जा और विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा के रूप में होती हैं। इनकी तरंगों से ही आभामण्डल निर्मित होता है। प्राणी चेतन और पुद्गल का सांयोगिक रूप है। आत्मा का लक्षण है चैतन्य और पुद्गल का लक्षण है स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण। दोनों की संयुक्त क्रिया प्रणाली के आधार पर कहा जा सकता है कि हमारे शरीर से दो प्रकार की ऊर्जाओं का संयुक्त विकिरण होता है - 1. चैतन्य द्वारा प्राणऊर्जा का विकिरण 2. भौतिक शरीर द्वारा चुम्बकीय ऊर्जा का विकिरण। __ प्राण ऊर्जा का आधार है व्यक्ति की भावधारा। भावधारा चैतसिक लेश्या (भावलेश्या) है।आभामण्डल पौद्गलिक लेश्या (द्रव्यलेश्या) है। दोनों का परस्पर गहरा संबंध है । यद्यपि जैन आगमों में आभामण्डल जैसा कोई शब्द प्रयुक्त नहीं हुआ है परन्तु तैजस शरीर, तेजोलेश्या, तेजोलब्धि और तैजस समुद्घात से जुड़ी चर्चा आभामण्डल की सूक्ष्म व्याख्या करती है। आभामण्डल जड़ और चेतन दोनों में होता है। जड़ पदार्थ का आभामण्डल बदलता नहीं, निश्चित रहता है जबकि प्राणी का आभामण्डल प्रतिक्षण बदलता रहता है, क्योंकि प्राणी में इस बदलाव का मूल कारण लेश्या भाव-संस्थान विद्यमान है। लेश्या सिर्फ जीव में होती है इसलिए कहा जा सकता है कि प्राणी के आभामण्डल का नियामक तत्त्व लेश्या है। आभामण्डल के द्वारा चेतना में आए परिवर्तन अभिव्यक्त होते हैं। मन और शरीर की भूमिका पर घटित होने वाली सूक्ष्म घटनाओं का ज्ञान इसी के माध्यम से संभव होता है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि देवताओं की मृत्यु के छह माह पहले ही उनकी दीप्ति क्षीण होने लगती है। प्राचीन किंवदन्ती है कि शिष्य को दीक्षित करने से पहले गुरु उसका आभामण्डल देखकर उसकी पहचान कर लिया करते थे। महान आध्यात्मिक साधकों के जीवन से जुड़े अनेक वृत्तान्त साक्षी हैं कि लोग अपनी समस्याओं के साथ, जिज्ञासाओं के साथ उनके पास आते थे। वे अपनी बात कहते, उससे पहले ही भगवान उन सबका समाधान कर देते थे। लगता है यह आभामण्डल को देखने और उसका अर्थ समझने की क्षमता के कारण ही सम्भव होता था। __ शताब्दियों तक यह अवधारणा रही कि आभामण्डल सिर्फ अन्तर्द्रष्टा महापुरुष ही देख सकते हैं किन्तु आधुनिक प्रयोगों द्वारा प्राप्त परिणामों ने यह बात सिद्ध कर दी है कि उपकरणों की सहायता से भौतिक आंखों से भी आभामण्डल को देखा जा सकता है। आभामण्डल देखने में दक्ष लोगों ने यह भी बताया कि इसे तभी देखा जा सकता है जब इसमें उभरने वाले रंगों की स्पष्टता हो। इसके लिए व्यक्तित्व का साफ-सुथरा होना भी Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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