SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्या और मनोविज्ञान श्या की तरह आधुनिक मनोविज्ञान व्यक्तित्व के मनोदैहिक गुणों की व्याख्या करता है, जबकि इससे पूर्व सभी आत्मवादी दर्शनों ने व्यक्तित्व को चेतना मानकर उसके गुणों को व्याख्यायित किया है। 128 व्यक्तित्व की परिभाषा व्यक्तित्व की पहचान के सन्दर्भ में मनोविज्ञान में कई दृष्टियों से इसे परिभाषित किया गया है । कुछ मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्ति के जैविक एवं मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों के समुच्चय पर बल दिया है। इस संग्राही व्याख्या के अन्तर्गत मार्टन प्रिंस ने कहा - "व्यक्तित्व व्यक्ति के सभी जैवकीय आन्तरिक विन्यासों, आवेगों, प्रवृत्तियों, बुभुक्षाओं, मूलप्रवृत्तियों तथा अर्जित विन्यासों और प्रवृत्तियों का योग है। " समाकलनात्मक दृष्टि से व्यक्तित्व केवल विभिन्न प्रवृत्तियों का जोड़ ही नहीं, उसमें निहित संगठन एवं समाकलन की विशेषता होती है जो किसी व्यक्ति की विशेषता और अनन्यता का प्रतीक है। इस सन्दर्भ में कोटिन्सकी का कहना है - "व्यक्तित्व चिन्तन करते हुए, अनुभव करते हुए और क्रिया करते हुए मानव प्राणी है जो कि अधिकतर अपने को अन्य व्यक्तियों और वस्तुओं से पृथक् एक व्यक्ति समझता है। मानव प्राणी व्यक्तित्व रखता नहीं, वह स्वयं एक व्यक्तित्व होता है।" गुणात्मक विकास की श्रेणी आरोहण के सन्दर्भ में व्यक्तित्व को सोपानों के माध्यम से समझा गया । विलियम जेम्स ने व्यक्तित्व यानी स्व के चार सोपान माने हैं- भौतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, शुद्ध अहं । महर्षि अरविन्द ने विकास क्रम में भौतिक, प्राणिक, भावात्मक, बौद्धिक, चैत्य, आध्यात्मिक और अतिमानसिक सोपानों का उल्लेख किया है। उपनिषद् काल के दार्शनिकों ने अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय पुरुष के रूप में आत्मा के ऊर्ध्वारोहण का क्रम दिया है। जैन-दर्शन में गुणस्थानों के क्रमिक ऊर्ध्वारोहण के सन्दर्भ में लेश्या की व्याख्या महत्त्वपूर्ण है । आधुनिक जैविकी के प्रभाव के फलस्वरूप मनोवैज्ञानिक व्यक्तित्व के अध्ययन एवं व्याख्या में समायोजन को महत्वपूर्ण मानते हैं। इस वर्ग की व्याख्या में जी. डब्ल्यू. ऑलपोर्ट की प्रसिद्ध एवं प्रतिनिधि परिभाषा स्वीकृत है । उनके शब्दों में "व्यक्तित्व व्यक्ति की उन मनोशारीरिक पद्धतियों का वह आन्तरिक गत्यात्मक संगठन है जो कि पर्यावरण में उसके अनन्य समायोजन को निर्धारित करता है।" - 12 इन परिभाषाओं के सन्दर्भ में जैन दर्शन की अवधारणा के अनुसार लेश्या से जुड़े व्यक्तित्व की मनोवैज्ञानिक व्याख्या की जा सकती है। 1. संग्राही परिभाषा के अनुसार कहा जा सकता है कि व्यक्तित्व शुभ-अशुभ संस्कारों का संचयकोष है। जब तक उसमें योग की प्रवृत्ति है और कषाय जैसे संवेगों की 1. 2. Morton Prince : The Unconscious. p. 53 G. W. Allport, Personality: A Psychological interpretation, p. 48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003048
Book TitleLeshya aur Manovigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy