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________________ ९८ अध्यात्म का प्रथम सोपान : सामायिक सत्य के प्रति समर्पण मानसिक स्वास्थ्य की साधना का तीसरा सूत्र है-सत्य के प्रति समर्पण । सत्य की व्याख्या बहुत ही जटिल है । किसे सत्य माना जाए ? हमें इसमें उलझना नहीं है । सत्य का अर्थ है-सार्वभौम नियम (युनिवर्सल ट्रुथ ) मृत्यु एक सार्वभौम नियम है, यह एक बड़ी सचाई है । कोई भी इसे नहीं टाल सकता | इस दुनिया में तीर्थंकर भगवान्, अर्हृत् मसीहा आदि-आदि अनेक शक्तिशाली व्यक्ति हुए हैं, जो इस शाश्वत नियम को नहीं टाल पाए हैं । कोई भी इस सार्वभौम नियम का अपवाद नहीं बन सकता । कोई अमर नहीं रह सकता | कोई भी प्राणी सदेह अमर नहीं होता | विदेह में जो अमर होता है, वह हमारे सामने नहीं है । मृत्यु एक सचाई है | कर्म एक सचाई है | काल एक सच्चाई है । वस्तु स्वभाव एक सचाई है । जो भी सार्वभौम सचाइयां हैं, व्यापक सत्य हैं, उनके प्रति जो समर्पित रहता है, वह मानसिक दृष्टि से स्वस्थ रह सकता है। एक व्यक्ति के पास एक घड़ी थी। वह गुम हो गई । व्यक्ति रोने लगा। उसका विलाप कई दिनों तक चलता रहा । उसके मुंह पर उदासी छा गई। . जो अरबपति हैं, करोड़पति हैं, उनके जेब से भी यदि सौ रुपये गुम हो जाते हैं, तो उसका सारा दिन उदासी में बीतता है । इसका मतलब है कि वे सचाई के प्रति समर्पित नहीं हैं । वे इस सचाई को नहीं जानते कि जहां संयोग होता है वहां वियोग निश्चित है | हम इस सचाई के प्रति समर्पित हों-'संयोगाः विप्रयोगान्ताः'–संयोग विप्रयोग से जुड़े रहते हैं । जिस क्षण में संयोग होता है, उसी क्षण से वियोग का सिलसिला भी चालू हो जाता है । जन्म के साथ ही मृत्यु का क्षण भी प्रारंभ हो जाता है । जन्म का अंतिम परिणाम है मृत्यु । जन्म हो और मृत्यु न हो यह कभी संभव नहीं है । जो इस सचाई के प्रति समर्पित नहीं होते, वे असंतुलित और विकृत हो जाते हैं । उनका मन अस्वस्थ हो जाता है । मानसिक रोग आक्रान्त कर लेता है । जो मृत्यु की सचाई को जानते हैं वे किसी के मर जाने पर अपना संतुलन नहीं खोते । कुछ दुःख होता है, किन्तु वह भी स्थायी नहीं रहता, क्षणिक होता है । जिन्होंने इस शाश्वत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003047
Book TitleSamayik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size8 MB
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