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________________ ६ । भय की तमिस्त्रा : अभय का आलोक भगवान महावीर साधना के पथ पर निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। उनका आत्मबल प्रबल और पुरुषार्थ प्रदीप्त हो रहा है। उनका पथ विघ्नों और बाधाओं से भरा है। तीखेतीखे कांटे चुभन पैदा कर रहे हैं किन्तु वे एक क्षण के लिए भी उनसे संत्रस्त नहीं हैं। १. साधना का पहला वर्ष चल रहा है। महावीर का आज का ध्यान-स्थल अस्थिकग्राम है। वे शूलपाणि यक्ष के मन्दिर में ध्यान मुद्रा के लिए उपस्थित हैं। गांव के लोगों का मन भय से आकुल है । पुजारी भी भयभीत है। उन सबने कहा, 'मुनिवर! आप गांव में चलिए। यह भय का स्थान है। यहां रहना ठीक नहीं है । शूलपाणि यक्ष बहुत क्रूर है। जो आदमी रात को यहां ठहरता है, वह प्रातः मरा हुआ मिलता है। महावीर ने कहा – 'मैं गांव में जा सकता हूं। पर इस सुनहले अवसर को छोड़कर मैं गांव में कैसे जाऊं? स्वतंत्रता की साधना का पहला चरण है अभय । ध्यान-काल में इस सत्य का मुझे साक्षात् हुआ है । मैं अभय के शिखर पर आरोहण का अभियान प्रारम्भ कर चुका हूं। यह कसौटी का समय है। इससे पीछे हटना क्या उचित होगा?' लोगों के अपने तर्क थे और महावीर का अपना तर्क था। उनकी वेधक शक्ति अधिक थी, अतः उससे निरुतर हो सब लोग गांव में चले गए। महावीर यक्ष के मन्दिर में ध्यानलीन होकर खड़े हैं। जैसे-जैसे समय बीत रहा है, वैसे-वैसे रात की श्यामलता, नीरवता और उनके मन की एकाग्रता गहरी होती जा रही अकस्मात् अट्टहास हुआ। वातावरण की नीरवता भंग हो गई। सारा जंगल कांप उठा। महावीर पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। कुछ क्षणों के बाद एक हाथी आया। उसने अपने दांतों से महावीर पर तीखे प्रहार किए पर वह महावीर को विचलित नहीं कर सका। हाथी के अदृश्य होते ही एक विषधर सर्प सामने आ गया। उसकी भयंकर फुफकार से भयभीत होकर पेड़ पर बैठी चिड़ियां चहकने लग गई। उसने महावीर को काटा पर उनके मन का एक कोना भी प्रकंपित नहीं हुआ। यक्ष का आवेश शांत हो गया। महावीर के जीवन में यह घटना घटित हुई या नहीं, यक्ष ने उन्हें कष्ट दिया या नहीं, इन विकल्पों का समाधान आप मांग सकते हैं, पर मैं इनका क्या समाधान दूं? जिन ग्रन्थों के आधार पर मैं इन्हें लिख रहा हूं, वे आपके सामने हैं। यदि आप अन्तर्-जगत् में मेरे साथ चलें तो मैं इनका समाधान दे सकता हूं। १. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २७३, २७४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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