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________________ १६ / श्रमण महावीर बदूं। ___'भैया! तुम्हें लगता है कि शासन में खामियां हैं। वह मनुष्य को मर्यादाशील नहीं बनाता, किन्तु उसकी परतंत्रता की पकड़ को मजबूत करता है तो उसे स्वस्थ बनाने के लिए तुम शासन में क्यों नहीं आते हो?' ___'भैया! हम गणतंत्र के शासक हैं । गणतंत्रीय शासन-पद्धति में हमें सबके मतों का सम्मान करना होता है। उसमें अकेला व्यक्ति जैसा चाहे, वैसे परिवर्तन कैसे ला सकता है? मैं पहले अपने अन्तःकरण में परिवर्तन लाऊंगा। उस प्रयोग के सफल होने पर फिर मैं उसे सामाजिक स्तर पर लाने का प्रयत्न करूंगा।' 'भैया! तुम कहते हो, वह ठीक है । मैं तुम्हारे इस महान् उद्देश्य की पूर्ति में बाधक नहीं बनूंगा। पर इस समय तुम्हारा घर से अभिनिष्कमण क्या उचित होगा? क्या मैं इस आरोप से मुक्त रह सकूँगा कि माता-पिता के दिवंगत होते ही बड़े भाई ने छोटे भाई को घर से बाहर निकाल दिया?' . नंदिवर्द्धन का तर्क भी बलवान् था और उससे भी बलवान् थी उसके हृदय की भावना। महावीर का करुणार्द्र हृदय उसका अतिक्रमण नहीं कर सका। दिन भर की थकान के बाद सूर्य अपनी रश्मियों को समेट रहा था। चरवाहे जंगल में स्वच्छन्द घूमती गायों को एकत्र कर गांव में लौट रहे थे। दुकानदार दुकानों में बिखरी हुई वस्तुओं को समेट कर भीतर रख रहे थे । सूर्य की रश्मियों के फैलाव के साथ न जाने कितनी वस्तुएं फैलती हैं और उनके सिमटने के साथ वे सिमट जाती हैं। सुपार्श्व और नंदिवर्द्धन के साथ बिखरी हुई कुमार वर्द्धमान की बात अभी सिमट नहीं पा रही थी। मधुकर पुष्प-पराग का स्पर्श पाकर ही सन्तुष्ट नहीं होता, वह उससे मधु प्राप्त कर सन्तुष्ट होता है । सुपार्श्व और नंदिवर्द्धन दोनों अपने-अपने असन्तोष का आदान-प्रादान कर रहे थे। उन्हें कुमार वर्द्धमान से सन्तोष देने वाला मधु अभी मिला नहीं था। कुमार वर्द्धमान अपने लक्ष्य पर अडिग थे, साथ-साथ अपने चाचा और भाई की वेदना से द्रवित भी थे। वे उन्हें प्रसन्न कर अभिनिष्क्रमण करना चाहते थे। उनकी करुणा और अहिंसा में प्रकृति सौकुमार्य का तत्त्व बहुत प्रबल था। कुमार अपनी बात को समेटने के लिए नंदिवर्द्धन के कक्ष में आए। चाचा और भाई को मंत्रणा करते देख प्रफुल्ल हो उठे। उनकी मंत्रणा का विषय मेरा अभिनिष्क्रमण ही है, यह समझते उन्हें देर नहीं लगी। वे दोनों को प्रणाम कर उनके पास बैठ गए। सुपार्श्व ने वर्द्धमान के अभिनिष्क्रमण की बात छेड़ दी। नंदिवर्द्धन ने कहा, 'चुल्लपिता! यह अकांड वज्रपात है । इसे हम सहन नहीं कर सकते । कुमार को अपना निर्णय बदलना होगा । मैं पहले ही कुमार से यह चर्चा कर चुका हूं। आज हम दोनों बैठे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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