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________________ जीवन का विहंगावलोकन / २६७ ५१. लोभोण सेवियव्वो। __-लोभ का सेवन मत करो। ५२. न भाइयव्वं। ___ -भय मत करो - व्याधि, जरा और मौत से भी मत डरो। ५३. हासं न सेवियव्वं। __-हास्य मत करो। ५४. न...... पावगं किंचि विझायव्वं। -बुरा चिंतन मत करो। ५५. ण मुसंबूया। -असत्य मत बोलो। ५६. बंभचेरं चरियव्वं। -ब्रह्मचर्य का आचरण करो। ५७. णिव्वाणं संधए। -निर्वाण का संधान करो। ५८. अदिण्णं पि यणातिए। -अदत्त मत लो - चोरी मत करो। ५९. अप्पणो गिद्धिमुद्धरे। -आसक्ति को छोड़ो - संग्रह मत करो। ६०. साहरे हत्थपाए य, मणं सव्विंदियाणि या __ -हाथ, पैर, मन और इन्द्रियों का अपने आप में समाहार करो। १२. भगवान् का निर्वाण ६१. अणुत्तरग्गं परमं महेसी, असेसकम्मंस विसोहइत्ता। सिद्धिं गतिं साहमणंत पत्ते,णाणेण सीलेणय दंसणेण।११ -भगवान् ज्ञान, दर्शन और शील के द्वारा अशेष कर्मों का विशोधन कर सिद्धि को प्राप्त हो गए। इस लोक में उससे परम कुछ नहीं है। vn १. पहावागरणाई:७११९ । पण्हावागरणाई:७।२०। पण्हावागरणाई:७१२१ । पण्हावागरणाई:६।१८ । सूयगडो:१।८।२० । पण्हावागरणाई:९।३ । ७. ८. ९. १०. ११. सूयगडो :१।९।३६ । सूयगडो :१।८।२० । सूयगडो:१।८।१३ । सूयगडो:१।८।१७ । सूयगडो :१।६।१७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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