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________________ २४२ / श्रमण महावीर सुख की सांस ली। राजगृह की जनता को अपना धन मिला और रोहिणेय को अपना धन मिला। दोनों की दिशाएं अपनी-अपनी समृद्धि से भर गईं। रोहिणेय का चोर मर गया। उसके आसन पर उसका साधु बैठ गया। बड़ा चोर कभी छोटा साधु नहीं हो सकता। उसने साधु की महत्ता को अंतिम सांस तक विकसित किया। ५. उन दिनों नेपाल रत्नकम्बल के लिए प्रसिद्ध था कुछ व्यापारी रत्नकम्बल लेकर राजगृह पहुँचे। सम्राट् श्रेणिक का अभिवादन कर अपना परिचय दिया और रत्नकम्बल दिखलाए। एक रत्नकम्बल का मूल्य सवा लाख मुद्राएं। सम्राट् ने उन्हें खरीदने से इन्कार कर दिया। वे निराश हो गए। मगध सम्राट् की यशोगाथा सुनकर वे आए थे। उन्हें आशा थी कि सम्राट् उनके सब कम्बल खरीद लेंगे। सम्राट् ने एक भी नहीं खरीदा। वे उदास चेहरे लेकर राजप्रासाद से निकले। वे मगध और राजगृह के बारे में कुछ हल्की बातें करते जा रहे थे । राजगृह में गोभद्र नाम का श्रेष्ठी था । उसकी पत्नी का नाम था भद्रा । उसके शालिभद्र नाम का पुत्र था । गोभद्र इस लोक से चल बसा था । भद्रा घर का संचालन कर रही थी। वह अपने वातायन में बैठी थी। वे व्यापारी उसके नीचे से गुजरे। भद्रा ने उनकी बातें सुनीं । मगध और राजगृह के प्रति अवज्ञापूर्ण शब्द सुन उसे धक्का लगा। उसका देशाभिमान जाग उठा । उसने व्यापारियों को बुलाया। उसने मगध की राजधानी के प्रति घृणा की सारी कहानी सुना दी। भद्रा ने उन्हें आश्वासन दिया और उनके सारे रत्नकम्बल खरीद लिये । वे प्रसन्न होकर मगध की गौरवगाथा गाते हुए अपने स्थान पर चले गए। महारानी चिल्लणा ने दूसरे दिन महाराज से एक रत्नकम्बल खरीद लेने का आग्रह किया । सम्राट् ने व्यापारियों को बुलाकर एक रत्नकम्बल खरीदने की बात कही। उन्होंने कहा - 'सब कम्बल बिक गए ।' 1 सम्राट् ने आश्चर्य के साथ पूछा - 'इतने कम्बल किन लोगों ने खरीदे ?" 'एक व्यक्ति ने । ' 'ऐसा कौन है ?" 'आपके राज्य में श्रीमंतों की कमी नहीं ।' 'फिर भी मैं नाम जानना चाहता हूँ।' 'हमारे कम्बलों को खरीदने वाली एक महिला है। उसका नाम है भद्रा ।' सम्राट् ने भद्रा के पास एक अधिकारी भेजा। उसने भद्रा को सम्राट् की भावना बताई । भद्रा ने कहा- 'मैंने वे कम्बल पुत्र-वधुओं को दे दिए। उन्होंने पैर पोंछकर फेंक दिए ।' अधिकारी ने सम्राट् को भद्रा की बात बता दी। उसकी बात सुन सम्राट् अवाक् रह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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