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________________ पारदर्शी दृष्टि : व्यक्त के तल पर अव्यक्त का दर्शन / २३१ अतिमुक्तक बहुत छोटी अवस्था में दीक्षित हुए। जीवन के तीन याम होते हैं - बाल्य, यौवन, वार्धक्य । भगवान् ने तीनों यामों में दीक्षित होने की योग्यता का प्रतिपादन किया। अतिमुक्तक प्रथम याम में दीक्षित हुए। ____ भगवान् महावीर पोलासपुर में विराज रहे थे। एक दिन गौतम स्वामी भिक्षा के लिए गए थे। वे इन्द्रस्थान के निकट जा रहे थे। बहुत सारे किशोर वहां खेल रहे थे। पोलासपुर के राजा विजय का पुत्र अतिमुक्तक भी वहां खेल रहा था। उसने गौतम को देखा । उसके मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न हुई। उसने गौतम के पास आकर पूछा - 'आप कौन हैं?' 'मैं श्रमण हूं।' 'आप क्यों घूम रहे हैं?' 'मैं भिक्षा के लिए नगर में जा रहा हूं।' 'आप मेरे साथ चलें। मैं आपको भिक्षा दिला दूंगा' - यह कहकर अतिमुक्तक ने गौतम की अंगुली पकड़ ली। वह गौतम को अपने प्रासाद में ले गया। उसकी माता श्रीदेवी ने गौतम को आदरपूर्वक भिक्षा दी। गौतम वापस जाने लगे। कुमार अतिमुक्तक ने पूछा - 'भंते! आप कहां रहते हैं?' 'मैं अपने धर्माचार्य के पास रहता हूं।' 'आपके धर्माचार्य कौन हैं?' 'श्रमण भगवान महावीर। 'वे कहां हैं?' 'यहीं श्रीवन उद्यान में। 'मैं भी आपके धर्माचार्य के पास जाना चाहता हूं।' 'जैसी तुम्हारी इच्छा।' कुमार अतिमुक्तक गौतम के साथ-साथ भगवान् के पास आया। उसने भगवान् को वन्दना की। भगवान् का उपदेश सुना। उसका मन फिर घर लौटने से इन्कार करने लगा। उसने दीक्षित होने की प्रार्थना की। भगवान् ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। किन्तु भगवान् माता-पिता की अनुमति के बिना किसी को दीक्षित नहीं करते थे। अतिमुक्तक माता-पिता की स्वीकृति प्राप्त करने उनके पास पहुंचा । उन्हें प्रणाम कर बोला 'आज मैं भगवान् महावीर के पास जाकर आया हूं।' 'कुमार! तुमने बहुत अच्छा किया।' 'मां! मुझे भगवान् बहुत अच्छे लगे।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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