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________________ सतत जागरण / १७९ 'मनुष्य जागरण के क्षण में होता है तब चित्त आलोकित हो उठता है। साथ-साथ पुण्य के संस्कार प्रबल होकर पाप के परमाणुओं को पुण्य में बदल डालते हैं । यह है पाप का पुण्य में संक्रमण । यह है कृत का परिवर्तन।' 'भंते ! प्रमाद के क्षण में क्या होता है?' 'प्रमाद के क्षण में मनुष्य का चित्त अन्धकार से आच्छन्न हो जाता है । साथ-साथ पाप के संस्कार प्रबल होकर पुण्य के परमाणुओं को पाप में बदल डालते हैं । यह है पुण्य का पाप में संक्रमण । यह है कृत का परिवर्तन।' 'भन्ते ! यह बहुत ही आश्चर्यकारी घटना है। यह कैसे सम्भव हो सकती है?' __'यह संभव है। इसी में हमारे पराक्रम की सार्थकता है। यह हमारे पुरुषार्थ की नियति है । इसे कोई टाल नहीं सकता। इसलिए मैं कहता हूं - यह अप्रमाद की ज्योति को अखंड रहने दो। ध्यान रखो, यह पलभर के लिए भी बुझ न पाए।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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