SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्रान्ति का सिंहनाद / १५५ हुआ। महारानी का आक्रोश उनकी आंखों के सामने घूमने लगा। सम्राट ने राजपुरुष को भेजकर उस आदमी को बुला लिया। वह सम्राट् को प्रणाम कर खड़ा हो गया। सम्राट ने पूछा – 'भद्र! तुम कौन हो?' 'मेरा नाम मम्मण है।' 'तुम कहां रहते हो?' 'मैं यहीं राजगृह में रहता हूं।' 'भद्र ! इस तूफानी रात्रि में कोपीन पहने तुम नदी के तट पर खड़े थे। क्या तुम्हें रोटी सुलभ नहीं हैं?' 'रोटी बहुत सुलभ है, महाराज!' 'फिर यह असामयिक प्रयत्न क्यों?' 'मुझे एक बैल की जरूरत है, इसलिए मैं नदी में प्रवाहित काष्ठ-खण्डों को संजो रहा था।' ___ एक बैल के लिए इतना कष्ट क्यों? तुम मेरी गोशाला में जाओ और तुम्हें जो अच्छा लगे, वह बैल ले लो।' 'महाराज! मेरे बैल की जोड़ी का बैल आपकी गोशाला में नहीं है, फिर मैं वहां जाकर क्या करूंगा।' 'तुम्हारा बैल क्या किसी स्वर्ग से आया है?' 'कल प्रातः काल आप मेरे घर चलने की कृपा करें, फिर जो आपका निर्देश होगा. वही करूंगा?' सूर्योदय होते ही सम्राट् मम्मण के घर जाने को तैयार हो गए। मम्मण राजप्रासाद में आया और सम्राट को अपने घर ले गया। उसका घर देख सम्राट् आश्चर्य में डूब गए। वह सम्राट् को बैल-कक्ष में ले गया। वहां पहुंच सम्राट् ने देखा - एक स्वर्णमय रत्न जड़ित बैल पूर्ण आकार में खड़ा है, और दूसरा अभी अधूरा है। इसे पूर्ण करना है, महाराज!' मम्मण ने अंगुली-निर्देश करते हुए कहा । सम्राट् दो क्षण मौन रहकर बोले - 'तुम सच कह रहे थे, मम्मण! तुम्हारी जोड़ी का बैल मेरी गौशाला में नहीं है और तुम्हारे बैल की पूर्ति करने की मेरी राज्यकोष की क्षमता भी नहीं है। मेरी शुभ कामना है - तुम अपने लक्ष्य में सफल होओ। मैं तुम्हारी धुन पर आश्चर्य-चकित हूं।" सम्राट् ने राजप्रासाद में आ उस धनी-गरीब की सारी रामकहानी महारानी को सुना दी। दोनों की आंखों में बारी-बारी से दो चित्र घूमने लगे - एक उस कालरात्रि में नदी-तट पर काम कर रहे मम्मण का और दूसरा स्वर्णमय रत्नजड़ित वृषभयुगल के निर्माता मम्मण का। इस घटना के आलोक में हम महावीर के असंग्रह व्रत का मूल्यांकन कर सकते हैं। हम इस तथ्य को न भुलाएं कि महावीर ने असंग्रह का विधान आर्थिक समीकरण के लिए १. आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० ३७१-३७२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003046
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy