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________________ प्रकरण ५१-५५ ] भोज और भीमका प्रबन्ध [४१ पिरो कर अपने अभ्यास-कौशलका परिचय दिया; और फिर राजासे 'यदि शक्ति है तो स्वामी भी ऐसा कर दिखावें । ऐसा कह कर राजाका गर्व खंडित किया। [उसका राधावेध करना देखकर किसो कविने उसकी प्रशंसामें कहा-] ७४. हे भोजराज ! मैंने राधा-वेध ( मत्स्य-वेध ) का कारण जान लिया । वह यह कि आप 'धारा' के विपरीत ( राधा ) को नहीं सह सकते। ५१) विद्वानों द्वारा इस प्रकार प्रशंसित होते हुए उस राजाको नया नगर बसानेकी इच्छा हुई तो उसने पटह बजवाया । उस समय धारा नामक एक वेश्या अपने अग्नि वे ताल नामक पतिके साथ लं का जाकर उस नगरका निवेश देख आई; और उसने यह कह कर कि नगरको मेरा नाम देना, लंका का प्रतिच्छन्द पट (मानचित्र ) राजाको दिया। उसके अनुसार राजाने नई धारा न गरी बसाई । दिगंबर कुलचन्द्रको सेनापति बनाना। ५२) किसी दिन वह राजा सायंकालके सर्वावसरके बाद अपने नगरके भीतर [ वीरचर्या निमित्त ] घूम रहा था, उसी समय किसी दिगंबर विद्वान्को यह कविता पढ़ते सुना ७५. न किसी सुभटके सिरपर खड्गके टुकड़े किये, न तेजी घोड़ोंपर सवारी ही की और न गौरी स्त्रीको गले ही लगाई-इस प्रकार निरर्थक ही यह नग्न जन्म चला गया। राजाने सवेरे ही उसको बुलाकर और वह संकेत सुनाकर उसकी शक्ति पूंछी । वह बोला७६. महाराज ! रमणीय दीपोत्सवके बीत जानेपर जब हाथियोंका मद झरने लगेगा तो मैं अपनी शक्तिसे गौड देश के साथ सारे दक्षिणा पथ को एक छत्र नीचे कर दूंगा। उसने अपना ऐसा पौरुष प्रकट किया तो राजाने उसे [ योग्य समझकर ] सेनापतिके पद पर अभिषिक्त किया। कुलचन्द्रकी गुजरातपर चढ़ाई। ५३) इधर, जब राजा भीम सिन्धु दे श की विजयमें रुका हुआ था, [ वह दिगम्बर ] सारे सामन्तोंके साथ, अण हि ल्ल पुर पर आक्रमण करके, उसके धवलगृहके घटिकाद्वार पर, कौड़ियाँ वपन कराकर उसने जयपत्र ग्रहण किया। तबसे सर्वत्र " कुलचन्द्रने लूट लिया" [ कहावत ] की प्रसिद्धि हुई । वह जयपत्र लेकर माल वा में गया। श्री भोज को यह वृत्तान्त विदित किया । ' तुमने वहॉपर कोयला क्यों नहीं बोया ? [ इन कौडियोंके बोनेसे तो यह सूचित होता है कि भविष्यमें ] यहाँसे कर वसूल होकर गूर्जर देश में जायगा।' इस प्रकार सर स्व ती-कण्ठा भरण श्री भोज ने [ यह भविष्यवचन ] कहा। ५४) एक बार चन्द्रातप (चाँदनी) में श्री भोज राजा बैठे थे, पास-ही-में कुल चंद्र भी था। पूर्ण चन्द्रमण्डलको देखकर [ पुनः पुनः उसकी ओर देखकर ] (राजाने ) यह पढ़ा७७. जिन लोगोंको रात प्रियाके साथ क्षणभरकी तरह व्यतीत हो जाती है, चन्द्रमा उनके लिये शीतल है; किन्तु विरहियोंके लिये तो उल्काके समान सन्तापदायक है। . उस कविके इस प्रकार आधा कहनेपर कु ल चन्द्र बोला हम लोगोंके न तो प्रिया है और न विरह है, इसलिये दोनों ओरसे भ्रष्ट होनेके कारण हमको तो ___ चंद्रमा दर्पणकी आकृतिके समान दिखाई देता है । न वह उष्ण है, न शीतल । ऐसा कहनेके अनन्तर ही उसे पुरस्कारमें एक वेश्या प्रदान की गई। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003014
Book TitlePrabandh Chintamani
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorHajariprasad Tiwari
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size15 MB
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