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________________ ज्योतिषी देव विस्तार | ( ६६६ ) २८ नक्षत्र, ८८ ग्रह ओर ६६६७५ काड़ा क्रोड़ तारों का परिवार है । १७ इन्द्र द्वार - असंख्य चंद्र, सूर्य हैं ये सर्व इन्द्र हैं परंतु क्षेत्र अपेक्षा १ चंद्र इन्द्र और १ सूर्य इन्द्र है । १८ सामानिक द्वार - एकेक इन्द्र के ४-४ हजार सामानिक देव हैं | १६ आत्म रक्षक द्वार- एकेक इन्द्र के १६-१६ हजार आत्म रक्षक देव हैं । २० परिषदा - तीन-तीन हैं अभ्यन्तर सभा में ८००० देव, मध्य सभा में १० हजार और बाह्य सभा में १२ हजार देव हैं देविये तीनों ही सभा की १००-१०० हैं प्रत्येक इन्द्र की सभा इसी प्रकार जानना । २१ अनीका द्वार - एकेक इंद्र के ७-७ अनीका हैं प्रत्येक अनी में ५ लाख ८० हजार देवता हैं सात अनीका भवनपति वत् । २२ देवी द्वार - एकेक इंद्र की ४-४ अग्र महिषी एकेक पटरानी के चार चार हजार देवियों का परिवार एकेक देवी ४–४ हजार रूप वैक्रिय करे अर्थात् ४÷४०००=१६०००÷४००० = ६४०००००० देवी, रूप एकेक इंद्र के हैं । २३ जाति द्वार - सर्व से मंद जाति चंद्र की, उससे सूर्य की शीघ्र (तेज) उर से ग्रह की तेज, उससे नक्षत्र की तेज और उससे तारा की तेज गति है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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