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________________ १४ राज लोक । ५ २५" १०० " ४००. १६०० ६ ३६" १४४ " ५७६ " २३०४" ६|| " ४२|" १६६" ६७६ " २७०४ " 19 " ४६" १६६ " ७८४ ” ३१३६ ", धो लोक में कुल १७५॥ घनराज, ७०२ परतर राज, २८०८ सूचि राज, ११२३२ खण्ड राज हैं । १८०० यो न जाड़ा व १ राज विस्तार वाला तिर्छा लोक है जिसमें असंख्यात द्वीप समुद्र ( मनुष्य तिर्देव के स्थान ), और ज्योतिषी देव हैं तिर्छा और उध्वं लोक मिल कर ७ राजु है | " पक धूम तम तमतमा" " "9 99 99 ܕܕ "" 27 19 이 ** Jain Education International समभूमि से १ || राजु ऊंचा १-२ देवलोक है यहां से १ राजु ऊँवा तीसरा - चौथा देवलोक है यहाँ से ० ||| राजु ऊंचा देवलोक है | राजु ऊंचा लांतक देवलोक यहाँ से | राजु ऊंचा सातवाँ देवलोक, राजु ऊंचा आठवाँ ०॥ राजु ऊंचा ६-१० वाँ देवलोक, ०॥ राजु ऊंचा ११-१२ देवलोक, १ राजु ऊंचा नव ग्रीयवंक १ राजु ऊंचा ५ अनुत्तर विमान आते हैं इनका क्रमशः बढ़ता घटता विस्तार यन्त्रानुसार है 19 स्थान जाड़ा विस्तार घनराज परतरराज सूचिराज खंडराज सम भूमि से || १ oil २ द ३२ यहां से oll १ ॥ 오른 ४। ७२ ૨ ६४ www.jainelibrary.org ( ६४७ ) For Private & Personal Use Only "" १८ १६
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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