SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 529
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आकाश श्रेणी। ( ५१७ ) (३) अनादि सान्त-अलोक अनादि है परन्तु लोक के पास अन्त है। (४) अनादि अनन्त-जहां लोक का व्याघात नहीं पड़े वहां चार दिशा में सादि सान्त सिवाय के ३ भांगे । ऊंची नीवी दिशा में ४ भांगा। द्रव्यापेक्षा श्रेणी कुड़जुम्मा है । ६ दिशा में और द्रव्यापेक्षा लोकाकाश की श्रेणी, ६ दिशा की श्रेणी और अलोकाकाश की श्रेणी भी यही है, प्रदेशापेक्षा आकाश श्रेणी तथा ६ दिशा में श्रेणी कुड़जुम्मा है प्रदेशापेक्षा लोकाकाश की श्रेणी स्यात् कुड़जुम्मा स्यात् दावरजुम्मा है । पूर्वादि ४ दिशा और ऊंची नीची दिशापेक्षा कुड़जुम्मा है । प्रदेशापेक्षा अलोकाकाश की श्रेणी स्यात् कुड़जुम्मा जाव स्यात् कलयुगा है। एवं ४ दिशा की श्रेणी, परन्तु ऊंची नीची दिशा में कलयुगा सिवाय की तीन श्रेणी है। श्रेणी ७ प्रकार की भी होती है-ऋजु, एक वंका,M दो वंका, _एक कोने वाली, - दो कोने वाली, - अर्ध चक्र वाल, 0 चक्र वाल । ___जीव अनुश्रेणी (सम ) गति करे, विश्रेणी गति न करे । पुद्गल भी अनुश्रेणी गति ही करे । विश्रेणी गति न करे। ॥ इति श्राकाश श्रेणी सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy