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________________ ( ३०८ ) थोकडा संग्रह। अर्थः--१ धनवात २ तनुवात ३ घनोदधि, पृथ्वी सात-१०, ११ असंख्यात द्वीप १२ असंख्यात समुद्र, बारह देव लोक २४, नव ग्रीयवेक ३३, पांच अनुत्तर विमान ३८, सिद्धि शिला-३६ ।२। गाथा:-- उरालिया चउदेहा, पोगल काय छ दव्व लेस्सा य; तहेव काय जोगेणं ए सव्वेणं अठ्ठ फासा ॥३॥ अर्थः-४० औदारिक शरीर ४१ वैक्रिय शरीर ४२ आहारिक शरीर ४३ तैजम् शरीर एवं चार देह-४४पुद्गलास्ति काय का बादर स्कन्ध, ६ द्रव्य लेश्या (१कृष्ण, २ नील ३ कापोत ४ तेजो ५ पद्म ६ शुक्ल) ५०, ५१ काय योग एवं सर्व ५१ बोल रूपी आठ स्पर्श हैं । इनमें वीस वीस बोल पावे । पांच वर्ण-दो गन्ध-७, पांच रस१२, आठ स्पर्श-१३ शीत १४ उष्ण १ लूखा ( रूक्ष ) १६ स्निग्ध १७ गुरु ( भारी) १८ लघु (हलका) १६ खरखरा २० सुवाल (मृदु-कोमल )।३। . _गाथापाव ठाणा विरइ, चउ चउ बुद्धि उग्गहे; सन्ना धम्मथी पंच उठाणं, भाव लेस्साति दिठीय ॥४॥ अर्थ-अठारह पाप स्थानक की विरति (पाप स्थानक से निवर्त होना) १८, चार बुदि-१६ औत्पातिका २० कामीया २१ विनया २२ परिणामीया; चार मति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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