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________________ पंचम खण्ड ३५९ (ख) अंशनैगम-एक पुरुष की धोती अथवा एक स्त्री की साड़ी पर एकाध चिनगारी गिरने से उसके किञ्चित् जल जाने पर वह पुरुष अथवा स्त्री एकदम चौंककर बोल उठते हैं कि 'मेरी धोती जल गई' मेरी साड़ी जल गई' । इसी प्रकार कुर्सी का एक पैर टूट जाने पर 'कुर्सी टूट गई' ऐसा कहा जाता है। (ग) आरोप नैगम-'आज दीवाली के दिन महावीर स्वामी का निर्वाण हुआ' अथवा आज चैत्र शुक्लत्रयोदशी के दिन महावीर स्वामी ने जन्म लिया'-इस प्रकार कहने में वर्तमान के उपर भूतकाल का आरोप किया जाता है। चावल पकने आए हों तब चावल पक गए अथवा बिस्तर बिछाया जा रहा हो तब बिछा दिया—ऐसा कहा जाता है। इसमें भूतकाल के ऊपर भविष्य का आरोप है । यह कालारोप है । दूसरे भी अनेकविध आरोप हैं । आरोपनैगम में अन्तर्भूत होनेवाला उपचारनैगम इस तरह है 'महाकवि कालिदास भारत का शेक्सपियर है ।' सुखदुःख में सहायक होनेवाले मित्र के बारे में कहना कि 'वह तो मेरा दाँया हाथ है ।' अपनी प्रिय पुत्री के बारे में कहना कि 'वह तो मेरी आँख की पुतली है ।' सुन्दर स्त्री के बारे में कहना कि 'यह तो मूर्तिमान् सौन्दर्य है ।' _ 'त्वं जीवितं त्वमसि में हृदयं द्वितीयं त्वं कौमुदी नयनयोरमृतं त्वमङ्गे ।' [तू मेरा जीवन है, मेरा दूसरा हृदय है, मेरे नेत्रों की चन्द्रिका है, मेरे अंग में अमृतरूप है।] ये सब उपचार नैगम के उदाहरण हैं। इस प्रकार विविध लोकरूढि एवं लौकिक संस्कार के अनुसरण में से उत्पन्न होनेवाले विचार तथा वाग्व्यापार नैगमनय की कोटि में रखे जाते हैं। नैगमनय धर्म तथा धर्मों में से किसी एक को गौण रुप से और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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