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________________ सुयोग्य तथा शास्त्रानुमोदित है । अतएव किसी मनुष्य को, जिस व्यक्ति की बे-वकूफ़ी, अन्याय अथवा घातक दुष्टता से, दुःख और आफत सहन करने पड़ें उसमें उस व्यक्ति की बे-वकूफ़ी अथवा दुष्टता बराबर जवाब-देह है और उस दुष्कृत्य के लिये वह बराबर अपराधी है-ऐसा कर्मशास्त्र का निवेदन है । ___ इसी प्रकार कर्मशास्त्र अपनी अथवा दूसरे की खराब परिस्थिति को दूर करने के लिये यथोचित प्रयत्न करने की भी उद्घोषणा करता है। उसका यह उद्घोष अपने लिये स्वहित और दूसरे के लिये कर्तव्यरूप दयाधर्म के पालन का उद्घोष है । घर में आग लगने पर उसे बुझाने के बदले यदि कोई मनुष्य बैठा-बैठा प्रार्थना करे कि 'हे भगवन्, बरसात भेजना !' तो यह कैसा कहा जायगा ? क्या भगवन् को भी ऐसी बात पसन्द आयगी ? God helps those who help themselves. अर्थात् ईश्वर उन्हें मदद करता है जो अपने आपको मदद करते हैं । दीन-हीन दःखी-दलित को और बदमाश, गुण्डे, लुटेरे अथवा हत्या करनेवाले के शिकँजे में फंसे हुए को उनके कर्म पर छोड देना—ऐसा नृशंसतापूर्ण तो कोई कर्मशास्त्र कहता ही नहीं । ऐसों को शान्ति देने का, उनके कष्ट दूर करने का अथवा उन्हें आफ़त से बचा लेने का प्रयत्न करने का ही कर्मशास्त्र का आदेश है और यह धर्मशास्त्रप्ररूपित धर्म हैं । ऊपर से नीचे गिरने-पड़ने के कारण जिसके हाथ-पैर आदि टूट गए हों अथवा चोट लगी हो, शस्त्रघात से घायल, सांप आदि से काटे हुए अथवा बीमार-ऐसे अपने स्वजन अथवा मित्र को स्वस्थ करने के लिये हम फौरन प्रयत्न करते हैं न ? वहाँ पर हम क्या उसके पूर्वकर्म को देखने बैठते हैं ? नहीं । इसी प्रकार दारिद्रय, रुग्णता, अनाथता, निराधारता के दुःख में अथवा पीडित, ताडित, पतित, दलित, शोषित दशा में पड़े हुओं का उद्धार करने का प्रयत्न करना वस्तुतः आवश्यक पुण्यरूप कर्तव्य है और ऐसे दःखार्तों की ओर उपेक्षा धारण करना-शक्ति होने पर भी लापरवाह स्वभाव के कारण अथवा ऐसा समझकर कि वह अपने पूर्वकर्मों के कारण दुःखी-हैं-पाप है । दुःख और आफ़त में फँसे हुए का उद्धार करने का यथायोग्य प्रयत्न यदि किया जाय तो [कर्मशास्त्र के नियम के अनुसार उसके इन दुःखद कर्मों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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