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________________ प्रस्तावना पीडित थाय छे एम का छे, आषाढ नामक वर्षमा भ. सं. (१७,३१) मां तोयसंकीर्णता जणावी छे ज्यारे वा. सं. (८; ११) मां कोई कोई स्थळे अनावृष्टि थाय एम जणाव्युं छे; श्रावण नामक वर्षमां भ. सं. (१७, ३१) मां केवळ अशुभ फळ ज कह्यु छे ज्यारे वा. सं.(८; १२) मां धान्य आनंदथी पाके छ एम का छे; भाद्रपद नामक वर्षमा भ. सं. (१७; ३२) मां संपूर्ण अशुभ फळ कां छे अने वा. सं (८; १३) मां मिश्र फळ कर्वा छे एटले के क्यांक सुभिक्ष अने क्यांक भय थाय छे एम विधान कयुं छे; आश्विन नामक वर्षमा भ. सं. (१७, ३२) मां संपूर्ण अशुभ फळ ज्यारे वा. सं. (८; १४) मां संपूर्ण शुभ फळ कडुं छे. आ रीते तपासतां एम फलित थाय छे के माघादि वर्षना फळमां बन्ने ग्रंथो वच्चे क्यांक साम्य, क्यांक वैषम्य, तो क्यांक वैमिथ्य नजरे पडे छे. बृहस्पति एक वर्षमा बे नक्षत्रोमा विचरण करे तो ते शुभकारक छ एम बन्ने संहिता ग्रंथोमा सष्टपणे कहेवामां आव्यु छ (भ. सं. १७, १८. वा. सं.८; १६). बृहस्पतिनो मेचक, कपिल, श्याम, पीत, पांडु, नील, रक्त अने धूम्र, रंग होय तो ते अप्रशस्त छे एम भ. सं. (१७, २) मा सामान्य रीते कहीने विशेषपणे (१७; ३) पण कहेवामां आव्यु छे के मेचक रंग मृत्यु, पांडु धननाश, पीत व्याधि, अने धूम्राभ जळ उत्पन्न करे छे ज्यारे वा. सं. (८; १७-१८) मां प्रतिपादित करवामां आव्युं छे के बृहस्पतिनो अग्नि समान रंग अग्नि, पीत व्याधि, श्याम युद्ध, शस्त्रभय, अने धूम्र रंग अनावृष्टि सूचक छे. आ रीते आ बाबतमां सादृश्यासादृश्य बन्ने ग्रंथोमां छे. _ भ. सं. (१७, २२ थी २६) मां कृत्तिका अने रोहिणी वर्षनी देह छे, आश्लेषा हृदय छे, पूर्वाषाढा अने उत्तराषाढा नाभि छे, अने मघा वर्ष- कुसुम छे एम कर्तुं छे अने वा. सं. (८; १९) मां पण एम ज कह्यु छे. देह नक्षत्र पीडित थाय तो व्याधि, हृदय नक्षत्र पीडित थवाथी हृद्रोग अने पुष्य नक्षत्र पीडित थवाथी पुष्पादिनो नाश थाय एम भ.सं.(१७, २५-२६) मां कडं छे ज्यारे वा. सं. (८; १९) मां देह नक्षत्रना घातथी अग्नि, नाभि नक्षत्रना घातथी य, पुष्य घातथी फळादिनो क्षय अने हृदय नक्षत्रना घातथी धान्य नाश उत्पन्न थाय छे एम कर्तुं छे. आ बन्ने फळादेशोमां तात्त्विक फेर नथी एम कही शकाय. स्निग्ध, प्रसन्न, विमल, महा प्रमाण, द्युतिमान, पीळो अने उत्तर मार्ग चारी गुरु प्रतिपक्ष हन्ता छ एम भ. सं. (१७; ४५) मां कहुं छे अने वा. सं. (८; ५३) मां निर्मळ किरण वाळो, स्थूळ मूर्ति, कुमुद समान कांति वाळो, अने श्रेष्ठ मार्गचारी गुरु मनुष्यो माटे हितकारी छे एम कर्तुं छे. आ बन्ने फळादेशोमां मौलिक फेर बिलकुल नथी तेथी बन्ने ग्रंथो वञ्चना साम्य- ए निदर्शन छे. भ. सं. (१७, ४०) मां कहेवामां आव्युं छे के जो नक्षत्रनी डाबी बाजु बृहस्पति विचरण करे तो घणु ज धन मेळवे परंतु तेनो भोगवटो न करी शके अने जो जमणी बाजु विचरण करे तो (१७; ४१) यायीनो विजय अने नागरोनो पराजय करे छे; वा. सं. (८; १५) मां आथी तद्दन उलटुंज कहेवामां आव्यु छ अर्थात् एमा एम कां छे के नक्षत्रनी डाबी बाजुनो बृहस्पतिचार, आरोग्य, सुवृष्टि, अने मंगल करनार छे अने जमणी बाजुनो बृहस्पतिचार, आथी विपरीत फळ आपनारो एटले के अशुभ फळ आपनारो कह्यो छे. बन्ने संहिता ग्रंथो वच्चेनो आ भेद घणो ज मोटो गणाय. भ. सं. (१७; ३५-३९) मां जणाव्युं छे के जो बृहस्पति कृत्तिकादि नक्षत्रमा आरोहण अने प्रमर्दन करे तो अमुक फळ उत्पन्न थाय ज्यारे वा. सं. मां एवं कशु वर्णन नथी. ए रीते आ वर्णन भ. सं. नुं एक वैशिष्ट्य गणाय. बुधचार भ. सन्म अढारमा तथा वा. सं. ना सातमा अध्यायमा बुधचारनुं वर्णन करवामां आवेल छे. वुधनी गातेना सौम्यादि नामोमां तेम ज तेनी गतिनी संख्यामां थोडंक साम्य छे अने थोडंक वैषम्य पण छे ते माटे जुओ भ. सं. (१८, २) अने वा. सं. (७८). भ. सं. मां बुधनी छ गतिओ वर्णवी छे, ज्यारे वा. सं. मां सात वर्णवी छे. बन्नेमा विमिश्र, संक्षिप्त अने घोर ए नामो सरखां छे ज्यारे बीजी गतिओना नामोमां विसंवाद छे. गतिओना फळमां साम्य विशेष छे अने वैसदृश्य ओछं छे (भ. सं. १८, ५. वा. सं. ७; १४). विमिश्रा अने संक्षिप्ताने भ. सं. मां हिता गणवामां आवी छे ज्यारे वा. सं. मां ते बन्नेने मिश्र फळ आपनारी गणी छे. बीजी गतिओना फळ पूरतुं बन्ने संहिताओमा ऐक्य छे. एक, एक गतिमां बुध केटला दिवस रहे छे ते संबंधमां भ. सं. (१८; ७) मां एम जणाव्युं छे के बुध पांच नक्षत्रोमा चार करे, छठ्ठामा अस्त पामे, अने सातमामा पुनः देखाय त्यारे तेनी सौम्या गति ज्यारे वा. सं. (७; १ थी १२) मां तो एम जणाव्युं छे के बुध जो अमुक नक्षत्र (जेना स्पष्ट नामो आप्या छे) मां विचरण करे तो तेने अमुक गति कहेवी वगेरे वगेरे. ते उपरांत, भ. सं. मां अमुक गतिमां बुध केटला दिवस रहे वगेरे बाबतो जे जणावी छ तेमां अने वा. सं. मां जणावी छे तेमां तफावत छे (भ. सं. १८३-४. वा. सं.७, १३). आ सिवाय पा. सं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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