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________________ ३८. (क) उस समय चंपा नगरी के सिंघाटकों-तिकोने स्थानों, तिराहों, चौराहों, जहाँ चार से अधिक रास्ते मिलते हों ऐसे स्थानों, चारों ओर मुख या द्वारयुक्त देवकुलों, राजमार्गों, गलियों पर बहुत से लोग परस्पर बातचीत करने लगे। बहुत से लोग एक-दूसरे से पूछ रहे थे, आपस में कह रहे थे, फुसफुसाहट कर रहे थे-धीमे स्वर में बात कर रहे थे। लोगों का बड़ा जमघट लगा था, वे बोल रहे थे। उनकी बातचीत की कलकल ध्वनि (शोर) सुनाई देती थी। जन-समुदाय की मानो एक लहर-सी उमड़ी आ रही थी। छोटी-छोटी टोलियों में लोग फिर रहे थे, इकट्ठे हो.रहे थे। बहुत से मनुष्य आपस में चर्चा कर रहे थे। अभिभाषण कर रहे थे, कोई किसी से पूछ रहे थे, कोई बिना पूछे ही एक-दूसरे को बता रहे थे___ "देवानुप्रियो ! धर्म के आदि प्रवर्तक, तीर्थंकर, स्वयंसंबुद्ध, पुरुषोत्तम, सिद्धि गतिरूप स्थान की प्राप्ति हेतु समुद्यत भगवान महावीर ग्रामानुग्राम विहार करते हुए यहाँ पधारे हैंयहीं चंपा नगरी के बाहर पूर्णभद्र चैत्य में यथोचित-श्रमण-मर्यादा के अनुसार स्थान ग्रहण कर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विराजमान हैं। देवानुप्रियो ! हम लोगों के लिए यह बहुत ही लाभप्रद है। ऐसे अर्हत् भगवान के नामगोत्र का सुनना भी बहुत बड़ी बात है, फिर उनके सम्मुख जाना, वन्दन, नमन, प्रतिपृच्छा करना, उनकी पर्युपासना करना, उनका सान्निध्य प्राप्त करना इनका तो कहना ही क्या? सद्धर्ममय एक सुवचन का सुनना भी बहुत बड़ी बात है, फिर विपुल-विस्तृत अर्थ (ज्ञान) के ग्रहण करने के फल के विषय की तो बात ही क्या? ___ अतः देवानुप्रियो ! अच्छा हो, हम उनके पास चलें वहाँ जाकर श्रमण भगवान महावीर को वन्दना करें, पंचांग (मस्तक, दो हाथ, दो घुटने) नमाकर नमन करें, भक्ति बहुमान के साथ उनका सत्कार करें, सम्मान करें। भगवान स्वयं कल्याण रूप हैं, मंगल हैं, देवाधिदेव हैं, तीर्थस्वरूप हैं। हम वहाँ जाकर उनकी पर्युपासना करें, उनके निकट बैठें। यह (वन्दन, नमन) आदि इस भव में-वर्तमान जीवन में और परभव में, जन्म-जन्मान्तर में हमारे लिए हितकारी, सुखकारी, शान्ति प्रदान करने वाला तथा निश्रेयस्कारी-मोक्षदायी सिद्ध होगा।" EAGERNESS OF THE PEOPLE OF CHAMPA 38. (a) During that period of time a large number of people gathered and exchanged views at public places like triangular courtyards (singhatak), crossings of three, four and more paths, temples with four gates on four sides, highways and streets of Champa city. Many of these were inquiring, talking and whispering. It had turned into a large gathering and everyone was समवसरण अधिकार (149) Samavasaran Adhikar For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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