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________________ 555555555555555555555555555555555555 उत्तरोत्तर प्रकाश देते रहें। तथा उत्तर दिशा में मुख करने का उद्देश्य यह है कि भरतक्षेत्र की उत्तर दिशा में विदेहक्षेत्र में सीमन्धर स्वामी आदि २० तीर्थंकर विहरमान हैं, उनका स्मरण मेरा पथ-प्रदर्शक रहे। ज्योतिष ग्रन्थों का कहना है कि पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुख करके शुभ कार्य करने पर ग्रहनक्षत्र आदि का शरीर और मन पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है और दक्षिण या पश्चिम दिशा में मुख करके कार्य करने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पूर्व दिशा प्रकाश व अभ्युदय की प्रतीक है, उत्तर दिशा धैर्य व समृद्धि की। भगवतीसूत्र में चारों दिशाओं के चार लोकपालों का उल्लेख है, पूर्व दिशा का लोकपाल सोम, दक्षिण का यम, पश्चिम का वरुण तथा उत्तर दिशा का लोकपाल वैश्रवण है। सोम और वैश्रवण सौम्यदृष्टि तथा धार्मिकों की रक्षा करने वाले हैं। हो सकता है इस दृष्टि से भी पूर्व एवं उत्तर दिशा शुभ मानी जाती हो। सभी तीर्थंकर साधना काल में उक्त दो दिशाओं के अभिमुख होकर साधना करते हैं, तथा समवसरण में प्रवचन भी इन्हीं दो दिशाओं की ओर अभिमुख होकर करते हैं। दीक्षा के समय शिरोमुण्डन कराकर साधना पथ पर बढ़ने वाले को दो प्रकार की शिक्षा दी जाती है-ग्रहणशिक्षा-सूत्र और अर्थ को ग्रहण करने की और आसेवनशिक्षा-पात्रादि के प्रतिलेखानादि की विधि का ज्ञान। शास्त्रों में साधुओं की सात मण्डलियों का उल्लेख मिलता है-(१) सूत्र-मण्डली-सूत्र पाठ के समय एक साथ बैठना। (२) अर्थ-मण्डली-सूत्र के अर्थ-पाठ के समय एक साथ बैठना। (३) भोजनमण्डती-भोजन करते समय एक साथ बैठना, (४) इसी प्रकार कालप्रतिलेखन-मण्डली, (५) प्रतिक्रमणमप्उली, (६) स्वाध्याय-मण्डली. और (७) संस्तारक-मण्डली। इन सभी का निर्देश सत्र १६८ में किया गया है। जीवन के अन्तिम समय में कषायों को कृश करते हुए काया को कृश करने का नाम संलेखना है। मानसिक निर्मलता के लिए कषायों को कृश करना तथा शरीर में वात-पित्तादि विकारों की शुद्धि के लिए भक्त-पान का त्याग करना, भक्त-पान प्रत्याख्यान समाधिमरण है। शरीर की समस्त क्रियाओं को छोड़कर कटे हुए वृक्ष की तरह शय्या पर निश्चेष्ट पड़ा रहना पादोपगमन संथारा है। (अभयदेवसूरिकृत वृत्ति एवं टीका, पृ. १८४) ॥प्रथम उद्देशक समाप्त ॥ Elaboration To face east and north direction while performing some auspicious act is an age old custom. In spiritual context the idea behind the custom of facing east is that the specific act may enlighten one's life just as the sun rising in the east enlightens the world. In the Videh area, which is to the north of Bharat area, there live twenty Tirthankars including Simandhar Swami. The idea behind facing north is that remembrance of these omniscients may become one's guiding factor towards spiritual progress. According to astrology the planets and द्वितीय स्थान (83) Second Sthaan Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002905
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages696
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size21 MB
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