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________________ फ्र फफफफफफफ 卐 भवत्थकेवलणाणे चेव, सिद्धकेवलणाणे चेव । ८९. भवत्थकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहासजोगि भवत्थकेवलणाणे चेव, अजोगिभवत्थकेवलणाणं चेव । ९०. सजोगि भवत्थकेवलणाणे दुवि पण्णत्ते, तं जहा - पढमसमयसजोगि भवत्थकेवलणाणे चेव, अपढमसमयसजोगि भवत्थकेवलणाणे चेव । अहवा - चरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव, अचरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव । ९१. [ अजोगिभवत्थकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा- पढमसमय - अजोगि भवत्थकेवलणाणे चेव, अपढमसमय- अजोगि भवत्थकेवलणाणे चेव । अहवा - चरिमसमय - अजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव, अचरिमसमय - अजोगिभवत्थकेवलणाणे चेव । ] ९२ सिद्धकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहाअणंतरसिद्धकेवलणाणे चेव परंपरसिद्धकेवलणाणे चेव । ९३. अणंतरसिद्धकेवलणाणे दुवि पण्णत्ते, तं जहा -एक्काणंतरसिद्धकेवलणाणे चेव, अणेक्काणंतरसिद्धकेवलणाणे चेव । ९४. परंपरसिद्धकेवलणाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा -एक्कपरंपरसिद्धकेवलणाणे चेव, अणेक्कपरंपरसिद्धकेवलणाणे चेव । फ्र சு சு 卐 ८६. ज्ञान दो प्रकार का है - प्रत्यक्ष - ( इन्द्रियादि की सहायता के बिना आत्मा द्वारा पदार्थों को जानने वाला ज्ञान) तथा परोक्ष (इन्द्रियादि की सहायता से पदार्थों को जानने वाला ज्ञान) । ८७. प्रत्यक्ष ज्ञान दो प्रकार का है - केवलज्ञान और नोकेवलज्ञान ( केवलज्ञान से भिन्न) । ८८. केवलज्ञान दो प्रकार का है- 5 भवस्थ केवलज्ञान (चार घाति कर्मों का क्षय होने पर मनुष्य भव में स्थित केवलियों का) और सिद्ध केवलज्ञान (मुक्तात्माओं का ) । ८९. भवस्थ केवलज्ञान दो प्रकार का है - सयोगिभवस्थ केवलज्ञान 5 (तेरहवें गुणस्थानवर्ती केवलियों का) और अयोगिभवस्थ केवलज्ञान (चौदहवें गुणस्थानवर्ती केवलियों का) । ९०. सयोगिभवस्थ केवलज्ञान दो प्रकार का है- प्रथम समयसयोगिभवस्थ केवलज्ञान (केवलज्ञान 5 उत्पन्न होने के पहले समय का ज्ञान) और अप्रथम समयसयोगिभवस्थ केवलज्ञान (केवलज्ञान हुए अनेक समय हो जाने पर) । अथवा चरम समय सयोगिभवस्थ केवलज्ञान (जिस ज्ञान को तेरहवाँ गुणस्थान पार करने में मात्र एक समय शेष रह गया हो, वह और अचरम समय भवस्थ केवलज्ञान जिस गुणस्थान को 5 पार करने में अनेक समय शेष हो वह । ९१. अयोगिभवस्थ केवलज्ञान दो प्रकार का है- प्रथम समय फ्र अयोगभवस्थ केवलज्ञान और अप्रथम समय अयोगिभवस्थ केवलज्ञान । ९२. सिद्ध केवलज्ञान दो प्रकार फ्र का है-अनन्तरसिद्ध केवलज्ञान (प्रथम समय के मुक्त सिद्धों का ज्ञान ) और परम्परसिद्ध केवलज्ञान (जिन्हें सिद्ध हुए एक समय से अधिक काल हो चुका है ऐसे सिद्ध जीवों का ज्ञान ) । ९३. अनन्तरसिद्ध फ केवलज्ञान दो प्रकार का है - एक अनन्तरसिद्ध का केवलज्ञान और अनेक अनन्तरसिद्धों का केवलज्ञान। 5 ९४. परम्परसिद्ध केवलज्ञान भी दो प्रकार का है- एक परम्परसिद्ध का केवलज्ञान और अनेक परम्परसिद्धों का केवलज्ञान । சு 卐 卐 स्थानांगसूत्र (१) 86. Jnana (knowledge) is of two kinds – pratyaksh (directly acquired by soul without the help of sense organs or mind) and paroksha (acquired through the sense organs). 87. Pratyaksh jnana (directly 5 卐 5 卐 (62) Jain Education International 卐 கதிமிததததததததி*****ழ***தமிழ***தமிதிதததத55 Sthaananga Sutra ( 1 ) For Private & Personal Use Only 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002905
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages696
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size21 MB
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