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________________ %% %%%%%%%%% %% %%%%%%%%%%%%%% %%%% ))) ) ) )) ) ))) ) )) )) ))) 5 (२) कोई भी जीव दर्शनलब्धि के रहित नहीं होता। दर्शन के तीन प्रकारों (सम्यक्, मिथ्या और मिश्र) में से 5 5 कोई-न-कोई एक दर्शन जीव में होता ही है। सम्यग्दर्शनलब्धि वाले जीवों में पाँच ज्ञान तथा सम्यग्दर्शनलब्धिरहित (मिथ्यादृष्टि या मिश्रदृष्टि) जीवों में तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं। मिथ्यादर्शनलब्धि वाले जीव अज्ञानी ही होते हैं। मिथ्यादर्शनलब्धिरहित जीव या तो सम्यग्दृष्टि होंगे या मिश्रदृष्टि होंगे। यदि वे म सम्यग्दृष्टि होंगे तो उनमें पाँच ज्ञान और मिश्रदृष्टि होंगे तो उनमें तीन अज्ञान भजना से होंगे। - सम्यग्मिथ्यादर्शनलब्धि और अलब्धि वाले जीवों में ज्ञान और अज्ञान की प्ररूपणा मिथ्यादर्शनलब्धि और अलब्धि वाले जावों की तरह समझनी चाहिए। म (३) चारित्रलब्धि के पाँच भेद हैं-(१) सामायिकचारित्रलब्धि-सर्वसावधव्यापार के त्याग एवं निरवद्यव्यापारसेवनरूप-राग-द्वेषरहित आत्मा के क्रियानुष्ठान के लाभ, सामायिकचारित्रलब्धि हैं। सामायिक के दो भेद हैं-इत्वरकालिक और यावत्कथिक। इन दोनों के कारण सामायिकचारित्रलब्धि के भी दो भेद हो जाते हैं। (२) छेदोपस्थापनीयचारित्रलब्धि-जिस चारित्र में पूर्वपर्याय का छेद करके महाव्रतों का उपस्थापन-आरोपण होता है, तद्रूप अनुष्ठान। यह भी दो प्रकार का है-निरतिचार और सातिचार। (३) परिहारविशुद्धचारित्रलब्धि-जिस । चारित्र में परिहार (तपश्चर्या-विशेष) से आत्म-शुद्धि होती है, अथवा अनेषणीय आहारादि के परित्याग से । 5 विशेषतः आत्म-शुद्धि होती है। इस चारित्र में तपस्या का कल्प अठारह मास में परिपूर्ण होता है। इसकी लम्बी प्रक्रिया है। निर्विश्यमानक और निर्विष्टकायिक के भेद से परिहारविशुद्धिचारित्र दो प्रकार का है। (४) में सूक्ष्मसम्परायचारित्रलब्धि-जिस चारित्र में सूक्ष्म सम्पराय अर्थात् सूक्ष्म (संज्वलन) लोभकषाय शेष रहता है। इस चारित्र के विशुद्ध्यमान और संक्लिश्यमान ये दो भेद हैं। (५) यथाख्यातचारित्रलब्धि-कषाय का उदय न होने से, अकषायी साधु का प्रसिद्ध चारित्र ‘यथाख्यातचारित्र' है। इसके स्वामियों के छद्मस्थ और केवली ऐसे दो भेद हैं। चारित्र का विस्तार से कथन शतक २५ उद्देशक ६-७ में किया जायेगा। म (३) चारित्रलब्धि वाले जीव ज्ञानी ही होते हैं। अतः उनमें पाँच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं, क्योंकि केवली भगवान भी चारित्री होते हैं। चारित्र अलब्धि वाले जीव ज्ञानी और अज्ञानी दोनों तरह के होते हैं। जो ज्ञानी हैं, उनमें भजना से चार ज्ञान (मनःपर्यायज्ञान को छोड़कर) होते हैं, क्योंकि असंयती सम्यग्दृष्टि जीवों में पहले के दो या तीन ज्ञान होते हैं और सिद्ध भगवान में केवलज्ञान होता है। सिद्धों में चारित्रलब्धि या अलब्धि नहीं है, वे नो-चारित्री-नो-अचारित्री नो-चारित्राचारित्री कहे जाते हैं। चारित्रलब्धिरहित, जो अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं। सामायिक आदि चार प्रकार के चारित्रलब्धियुक्त जीव ज्ञानी और छद्मस्थ ही ऊ होते हैं, इसलिए उनमें चार ज्ञान (केवलज्ञान को छोड़कर) भजना से पाये जाते हैं। यथाख्यातिचारित्र ग्यारहवें कसे चौदहवें गुणस्थान तक के जीवों में होता है। इनमें से ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थानवी जीव छद्मस्थ होने से उनमें आदि के चार ज्ञान और तेरहवें तथा चौदहवें गुणस्थानवी जीव केवली होते हैं, अतः उनमें केवल पाँचवाँ ज्ञान (केवलज्ञान) होता है। इसलिए कहा गया है कि यथाख्यातचारित्रलब्धियुक्त जीवों में पाँच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं। (४) चारित्राचारित्रलब्धि का अर्थ है-देशविरतिलब्धि। यह लब्धि एक ही प्रकार की है। 4 (४) चारित्राचारित्रलब्धि वाले जीव सम्यग्दृष्टि ज्ञानी होते हैं, इसलिए उनमें तीन ज्ञान भजना से पाये जाते हैं, चारित्राचारित्रलब्धिरहित जीव, जो असंयत सम्यग्दृष्टि व ज्ञानी हैं, उनमें सम्यग्ज्ञान होने से पाँच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं, इनमें जो अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं। )) ) ) ss * * hhhhhhhhhhh 955555555555 अष्टम शतक : द्वितीय उद्देशक (55) Eighth Shatak : Second Lesson Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002904
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages664
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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