SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रूप का गर्व एक दिन सौधर्म देवलोक में एक विशेष नाटक हो रहा था। उसी समय किसी दूसरे स्वर्ग का एक तेजस्वी देव वहाँ आ गया। उसको देखकर देवगण कहने लगे देवताओं को इस तरह विस्मित देखकर शक्रेन्द्र ने कहा इस देव ने पूर्व जन्म में आयंबिल वर्धमान तप किया था। उसी तप के प्रभाव से अद्भुत | रूप व कांति मिली है। वाह! क्या अद्भुत तेज है इसके चेहरे पर, क्या मोहक सौन्दर्य है ANA इसका? LOGGOSecr RECORDAN 0.500Ree सभा में बैठे दो देवों को शक्रेन्द्र की बात सुनकर शंका हुई। वे बोले तब देवताओं ने पूछा (देवराज ! क्या इसके समान दूसरे किसी को भी ऐसी रूप-ऋद्धि, प्राप्त है? देवराज ! हम प्रत्यक्ष देखना चाहते हैं। क्यों नहीं! हमारी अनुमति है। आप मनुष्यलोक में जाकर अवश्य देखिये। हाँ है ! मनुष्यलोक में सनत्कुमार चक्रवर्ती इससे भी बढ़कर रूपमान एवं तेजस्वी हैं। जण्ण 21 education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002837
Book TitleRup ka Garv Diwakar Chitrakatha 038
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy