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________________ रूप का गर्व सनत्कुमार ने विवाह के लिये स्वीकृति दे| दी। उसी वैतान्य पर्वत पर हम सौ बहनों का आर्यपुत्र के साथ पाणिग्रहण हो गया। RAMA mabandhit म यह कहकर बकुलमति हँसकर बोलीदेवर मी, इतना सब कुछ पाकरमानी कि जिन भी आर्यपुत्र सदा आपकी याद में उदास रहते थे। यहाँ मानसरोवर पर आकर भी इन्हें आपकी कमी खटकती रही थी। माता-पिता की याद आते ही सनत्कुमार भी उदास हो गया, और बोला- NOR तभी सनत्कुमार उठकर आये। बोले मित्र ! तुमने मित्र ! मेरी कहानी का सार हमारी आप बीती यही है कि आपके माता-पिता सुन ली! अब पुत्र-विरह में रात-दिन आँसू अपनी सुनाओ! बहा रहे हैं। इसलिए अब हस्तिनापुर चलना चाहिए। मित्र ! तुम्हारा कथन सत्य है, अब शीघ्र ही हमें हस्तिनापुर पहुंचना चाहिए। मान सनत्कुमार, महेन्द्रसिंह और सभी सुन्दरियाँ विमानों में बैठकर वैताढ्य पर्वत पर आ गये। Jain Education International 15arsonal use only www.jainelibrary.org
SR No.002837
Book TitleRup ka Garv Diwakar Chitrakatha 038
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size20 MB
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