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________________ यह सुनकर सुनन्दा आश्चर्य और हर्ष के साथ उसकी तरफ देखने लगी। YOY HD Col मूर्ख ! इसकी रक्षा तू क्या करेगा, पहले अपनी रक्षा कर रूप का गर्व Jain Education International सच ! अहा 'मेरा भाग्य जाग उठा ! आप ही हैं कुरुकुल के सूर्य ? तभी वह विद्याधर भी आ गया। उसने सनत्कुमार को देखकर हुँकार कीकौन है तू तस्कर ! यहाँ मेरे महलों में किसलिए आया? तस्कर मैं नहीं, तू है। तुमने एक आर्य कन्या का अपहरण किया है मैं इसकी रक्षा करने आया हूँ। विद्याधर सनत्कुमार को तभी सनत्कुमार ने विद्याधर के मस्तक पर जबर्दस्त पाद-प्रहार किया। दोनों हाथों में उठाकर | आकाश में उड़ गया । ले दुष्ट, अपनी करनी का फल चख । For Private 12 sonal Use Only धम प्रहार से विद्याधर मूर्च्छित होकर आकाश से सीधा समुद्र में गिर पड़ा। www.jainelibrary.org
SR No.002837
Book TitleRup ka Garv Diwakar Chitrakatha 038
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size20 MB
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