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________________ PORARIOMARITAINMETROMOTIONARIERROR ISTMAITRIORRORMATINENTARIAL श्री चन्द्रप्रभु जैन नया मंदिर ट्रस्ट मद्रास का सुवर्णमय इतिहास दक्षिण भारत के तामिलनाडु प्रान्त का संभ्रान्त महानगर मद्रास (तमिलनाम चैनपट्टनम्) सन् १९०४ से पुण्यशाली श्रावकों द्वारा एक छोटे से रूप में स्थापित ट्रस्ट श्री चन्द्रप्रभु जैन नया मंदिर की व्यवस्था चला रहा है।। इस बीसवीं सदी की शुरुआत में बीज के वट वृक्ष की कल्पना ही नहीं थी। पुण्यशालियों की भावभक्ति, दान पुण्य से, देव गुरु की असीम कृपा ने इसकी प्रगति में चार चाँद लगाए और १९०४ से १९९३ तक का इतिहास बेजोड़, अनुपम, अद्भुत, गौरवशाली एवं स्वर्णिम रहा है। एक छोटे से मंदिर से आज तिमंजला शिखरबद्ध संगमरमर का भव्य जिनालय शिल्पकला एवं स्थापत्य का बेजोड़ नमूना बना है। इसकी ८१ फीट की ऊँचाई के साथ ही साथ नूतन जिनालय में १२४ स्तंभ, २३ द्वार, ३४ कलामय गोखले, ५ झरोखे, ६२ तोरण, पहिली मंजिल में सुनाभ मेघनाद मंडप, गूढ मंडप, रंग मंडप परिक्रमा में १० दिग्पाल एवं मंडप में इन्द्र एवं देवाङ्गनाएँ स्थापित हैं। ___इस अमूल्य प्रगतिमय कार्य के साथ-साथ विशाल ज्ञानभंडार, हीरसूरि ज्ञान पुस्तकालय, आराधना भवन, नूतन आयंबिल शाला, धार्मिक पाठशाला भवन, हाईस्कूल की भव्य इमारत, भोजनशाला आदि अनेक संकुल निर्मित हुए हैं। 8 इस ९० वर्ष के अन्तराल में कई धार्मिक अनुष्ठान, उपधान, सैंकड़ों दीक्षाएँ, अनुपम तपश्चर्याएँ तथा एक से 8 एक बढ़कर सुविहित, ज्ञानी, ध्यानी, तपस्वी, महामुनि, आचार्य, उपाध्याय, श्रमण, श्रमणीवृन्द के ऐतिहासिक चातुर्मास होते रहे हैं, धर्मप्रभावनाएँ हुई हैं। 8 भारत भर में नूतन मंदिरों का निर्माण हो अथवा जीर्णोद्धार हो, श्री चन्द्रप्रभु जैन नया मंदिर ट्रस्ट का सदैव ही योगदान रहा है। संवत् २०५० में जब से अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ है तब से लगाकर आज तक करोड़ों की धनराशि जीर्णोद्धार में तथा जीवदया-प्राणीमात्र के कल्याणकारी कार्यक्रमों में लग चुकी है और भी आगे लगेगी। इस तरह से देव द्रव्य का सदा ही अनवरत रूप से सदुपयोग करते आ रहे हैं। पुण्यशाली दानवीर श्रावकों ने हर एक धार्मिक कार्यक्रम में अपना सर्वोच्च अपरिमित योगदान देना एक सात्विक रुचि बना ली है। इस शताब्दी में जैन इतिहास में जो भी विशेष उपलब्धियाँ हुई हैं-उनमें से एक महान उपलब्धि है मद्रास शहर में श्री चन्द्रप्रभु नया जैन मंदिर की अंजनशलाका-प्राण प्रतिष्ठा-महा महोत्सव-परम पूज्य आचार्य देवेश श्रीमद विजयकलापूर्ण सरीश्वरजी म. सा. के कर-कमलों द्वार सम्पन्न भव्यातिभव्य महोत्सव। इस प्रतिष्ठा 1 महोत्सव के दश दिवसीय कार्यक्रम में पूजा, जिनेन्द्र भक्ति-अंग रचना, चलचित्र रचनाएँ, रंगोली, साधर्मिक भक्ति स्वरूप साधर्मिक वात्सल्य के अनूठे कार्यक्रमा करीब-करीब भारत के सभी प्रान्तों से एवं विदेशों से पधारे हुए भाविकों ने मुक्त-कंठ से इसकी सराहनीय प्रशंसा की है। लाखों लोग जिन भक्ति-पूजा दर्शन वंदन में जुड़ गए हैं। देव, गुरु, धर्म के नेता सर्व मुनि भगवंतों से, आचार्यों से, साध्वीगणों से यह विशेष अनुनय-विनय है कि वे हमारे मद्रास संघ पर आशीर्वाद रूपी पुष्पों की वर्षा बरसाते रहें। श्री चन्द्रप्रभु जैन नया मंदिर ट्रस्ट, xx1848181818XII T9NTEXX. मद्रास "श्री जैन आराधना भवन" ३५१, मिन्ट स्ट्रीट, मद्रास - ६०० ०७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002813
Book TitleMeghkumar ki Atmakatha Diwakar Chitrakatha 014
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurnachandravijay, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
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