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________________ Jain राजकुमारी चन्दनबाला मनुष्य जाति के लाखों वर्ष का अनुभव यह बताता है कि ऋतु चक्र की भाँति जीवन में निरन्तर बसन्त और पतझड़ आते रहते हैं। उतार-चढ़ाव और सुख-दुःख छाया की भाँति मनुष्य के साथ लगे हुए हैं। संसार में सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख का क्रम दिन-रात चलता रहा है/चलता रहेगा। सुख-दुःख व उतार-चढ़ाव के इस चक्र में अपने आपको संतुलित रखकर लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने वाला मानव संसार में इतिहास बनाता है और महापुरुषों की श्रेणी में गिना जाता है। राजकुमारी चन्दनबाला का जीवन उतार-चढ़ाव के चक्र पर घूमते जीवन की विचित्र और रोमांचक गाथा है। उसकी कथा सुनते / पढ़ते ही हृदय द्रवित हो जाता है। आँसुओं से भीगी उसकी जीवन गाथा में आश्चर्य तो यह है कि आँसुओं ने ही उसके जीवन की दिशा बदल दी। जगत् बंधु प्रभु महावीर के दर्शन ने उसके आँसुओं को मोती बनाकर चमका दिया । इतिहास में अजर-अमर बना दिया। चन्दना का जन्म चम्पा के राज परिवार में हुआ। हँसी-खुशी और आनन्द की बहारों में बचपन बीता, किन्तु यौवन की दहलीज पर चढ़ते चढ़ते ऐश्वर्य और सुखों के सागर में तैरती राजहंसी एक दिन दुःखों के अथाह दलदल में फँस गई। चम्पा की राजकुमारी कौशाम्बी के दास बाजार में गुलामों की तरह नीलाम हुई। किसी अनजान अपरिचित घर में गुमनाम रहकर दासी की भाँति सेवा करती रही। ईर्ष्या और कुशंकाओं की कैंची ने उसके केशों को ही नहीं, समूचे जीवन पट को तार-तार कर रख दिया। हथकड़ी, बेड़ियों में जकड़ी हुई तीन दिन तक भूखी-प्यासी तहखाने में पड़ी रही। कठोर शारीरिक और मानसिक यातनाओं ने उसके धीरज की अग्नि परीक्षा ली, किन्तु वह हर परिस्थिति में शान्त रही, न तो अपने दुर्भाग्य पर आँसू बहाये और न ही किसी को कोसा। एक सूत्रधार की तरह तटस्थ भाव से वह भाग्य चक्र का खेल देखती रही और एक दिन वह आया, चन्दना के द्वार पर तरण-तारण दीनबंधु भगवान महावीर पधार गये । चन्दना के दुःखों का अन्त हुआ । नारी की प्रचण्ड अस्मिता जागी और दासी बनी राजकुमारी चन्दना भगवान महावीर के सबसे बड़े श्रमणी संघ की नायिका बनकर संसार को नारी जाति के कल्याण का मार्ग बताने लगी न Serving Jinshasan -महोपाध्याय विनय सागर लेखन : डॉ. साध्वी सरिता जी म. एम. ए. (डबल), पी-एच. डी. प्रकाशन प्रबन्धक : संजय सुराना श्रीचन्द सुराना "सरस" . साध्वी शुभा जी म. 070326 [email protected] एम. ए. (डबल), पी-एच. डी. चित्रण : डॉ. त्रिलोक शर्मा प्रकाशक श्री दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282002. फोन : (0562) 2151165 प्राकृत भारती एकादमी, जयपुर 13-ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302017. दूरभाष : 2524828, 2524827 अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.)
SR No.002810
Book TitleRajkumari Chandanbala Diwakar Chitrakatha 011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaritashree Sadhvi, Shreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
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